“पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने का मतलब जीवन और शांति है”
“जो परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मुताबिक चलते हैं, वे पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाते हैं।”—रोमि. 8:5.
गीत: 22, 52
1, 2. रोमियों अध्याय 8 में खासकर अभिषिक्त मसीही क्यों दिलचस्पी रखते हैं?
यीशु की मौत के स्मारक के दौरान क्या आपने कभी रोमियों 8:15-17 पढ़ा है? शायद आपने पढ़ा होगा। इन आयतों में समझाया गया है कि एक मसीही कैसे जान सकता है कि वह अभिषिक्त है या नहीं। रोमियों 8:1 में अभिषिक्त लोगों के बारे में बताया गया है कि वे “मसीह यीशु के साथ एकता में हैं।” तो क्या यह अध्याय सिर्फ अभिषिक्त लोगों पर लागू होता है? क्या यह उन मसीहियों पर भी लागू नहीं होता जिन्हें धरती पर जीने की आशा है?
2 यह अध्याय खासकर अभिषिक्त मसीहियों को ध्यान में रखकर लिखा गया है। उन्हें “पवित्र शक्ति” मिली है और वे ‘इंतज़ार कर रहे हैं कि परमेश्वर उन्हें अपने बेटों के नाते गोद ले और उन्हें अपने शरीरों से छुटकारा दिलाए।’ (रोमि. 8:23) यहोवा ने फिरौती बलिदान के आधार पर उनके पाप माफ किए हैं। और उसने उन्हें नेक ठहराया है ताकि वे उसके बेटे बन सकें। भविष्य में वे परमेश्वर के बेटों के नाते स्वर्ग में जीवन पाएँगे।—रोमि. 3:23-26; 4:25; 8:30.
3. धरती पर जीने की आशा रखनेवालों को रोमियों अध्याय 8 में क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?
3 लेकिन धरती पर जीने की आशा रखनेवाले मसीहियों को भी रोमियों में दिलचस्पी है क्योंकि परमेश्वर एक मायने में उन्हें भी नेक समझता है। इस बात का इशारा हमें अध्याय 8रोमियों अध्याय 4 में मिलता है, जहाँ पौलुस ने अब्राहम के बारे में बताया। अब्राहम विश्वास की बढ़िया मिसाल था। मगर वह अभिषिक्त नहीं था। दरअसल वह उस वक्त जीया था जब न तो यहोवा ने इसराएलियों को कानून दिया था और न ही यीशु इंसानों के पापों के लिए मरा था। फिर भी यहोवा ने उसके बेजोड़ विश्वास पर गौर किया और उसे नेक समझा। (रोमियों 4:20-22 पढ़िए।) उसी तरह आज यहोवा उन वफादार मसीहियों को भी नेक समझता है जिन्हें धरती पर हमेशा जीने की आशा है। इसलिए रोमियों अध्याय 8 में नेक लोगों को दी सलाह से उन्हें भी फायदा हो सकता है।
4. रोमियों 8:21 पढ़कर हमें खुद से क्या सवाल करना चाहिए?
4 रोमियों 8:21 में यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि नयी दुनिया ज़रूर आएगी। और इंसानों को पाप और मौत की गुलामी से आज़ाद किया जाएगा। यह आयत कहती है कि वे “परमेश्वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” पाएँगे। क्या आप मन की आँखों से खुद को नयी दुनिया में देख पाते हैं? आइए चर्चा करें कि नयी दुनिया में रहने के लिए हमें क्या करना होगा।
‘शरीर पर मन लगाना’
5. रोमियों 8:4-13 में पौलुस ने किस गंभीर विषय पर बात की?
5 रोमियों 8:4-13 पढ़िए। रोमियों अध्याय 8 बताता है कि “शरीर के मुताबिक” चलनेवालों और “पवित्र शक्ति के मुताबिक” चलनेवालों में क्या फर्क है। कुछ लोग शायद सोचें कि यहाँ उन लोगों के बीच फर्क बताया जा रहा है जो सच्चाई में हैं और जो सच्चाई में नहीं हैं, जो मसीही हैं और जो मसीही नहीं हैं। लेकिन पौलुस यहाँ मसीहियों की बात कर रहा था जो ‘पवित्र जन होने के लिए बुलाए गए थे।’ (रोमि. 1:7) वह उन मसीहियों के बीच फर्क बता रहा था जो शरीर के मुताबिक चल रहे थे और जो पवित्र शक्ति के मुताबिक चल रहे थे। लेकिन यह फर्क क्या था?
6, 7. (क) बाइबल में शब्द “शरीर” के कुछ मतलब क्या हैं? (ख) रोमियों 8:4-13 में शब्द “शरीर” से पौलुस का क्या मतलब था?
6 सबसे पहले शब्द “शरीर” पर ध्यान दीजिए। “शरीर” से पौलुस का क्या मतलब था? बाइबल में शब्द “शरीर” के अलग-अलग मतलब हैं। कुछ रोमि. 2:28; 1 कुरिं. 15:39, 50) और कुछ आयतों में यह शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ है जो एक ही खानदान से आए थे। जैसे, यीशु के बारे में कहा गया कि ‘वह शरीर के रिश्ते से दाविद के वंश से निकला था।’ और पौलुस ने यहूदियों के बारे में कहा कि वे “शरीर के अनुसार मेरे सम्बन्धी हैं।”—रोमि. 1:3; 9:3, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन।
आयतों में इसका मतलब हाड़-माँस से बना हमारा शरीर है। (7 लेकिन रोमियों 8:4-13 में शब्द “शरीर” का क्या मतलब है? इसका जवाब हमें रोमियों 7:5 में मिलता है। पौलुस ने वहाँ लिखा, “जब हम शरीर की इच्छाओं के मुताबिक जीते थे, तब मूसा के कानून के ज़रिए वे पाप-भरी वासनाएँ ज़ाहिर हुईं, जो हमारे अंगों में काम कर रही थीं।” यहाँ पौलुस समझाता है कि ‘शरीर के मुताबिक’ जीनेवाले वे हैं जो अपनी पाप-भरी वासनाओं के गुलाम हैं और इन्हें पूरा करने में लगे रहते हैं।
8. अभिषिक्त मसीहियों को “शरीर के मुताबिक” चलने से खबरदार करना क्यों सही था?
8 लेकिन पौलुस अभिषिक्त मसीहियों को “शरीर के मुताबिक” चलने से क्यों खबरदार कर रहा था? और आज उन मसीहियों को खबरदार क्यों रहना है जिन्हें परमेश्वर अपना दोस्त मानता है और नेक समझता है? क्योंकि कोई भी मसीही पापी शरीर के मुताबिक चलने लग सकता है। मिसाल के लिए, पौलुस ने लिखा कि रोम में कुछ भाई “अपने पेट के ही” गुलाम थे। उसका शायद यह मतलब था कि उनकी ज़िंदगी में खाना-पीना, अपनी वासनाएँ पूरी करना और मौज-मस्ती करना ही सबसे ज़्यादा अहमियत रखता था। (रोमि. 16:17, 18; फिलि. 3:18, 19; यहू. 4, 8, 12) ज़रा याद कीजिए कि कुरिंथ में एक भाई था जिसने कुछ समय के लिए “अपने पिता की पत्नी को अपनी कर लिया” था। (1 कुरिं. 5:1) तो हम समझ सकते हैं कि क्यों परमेश्वर ने पौलुस के ज़रिए मसीहियों को “शरीर पर मन लगाने” से खबरदार किया।—रोमि. 8:5, 6.
9. रोमियों 8:3 में दी पौलुस की चेतावनी किन मसीहियों पर लागू नहीं होती?
9 आज भी इस चेतावनी को मानना ज़रूरी है। क्योंकि हो सकता है कि एक मसीही, जो सालों से परमेश्वर की सेवा कर रहा है वह शरीर की बातों पर मन लगाने लगे। यहाँ उस मसीही की बात नहीं की जा रही है जो कभी-कभी खाने-पीने, नौकरी, मनोरंजन या प्यार-मुहब्बत के बारे में सोचता है। इन बातों के बारे में सोचना अपने आप में गलत नहीं है और परमेश्वर के ज़्यादातर
सेवक ऐसा करते भी हैं। यीशु ने खुद भी खाने का मज़ा लिया था और दूसरों को भी खिलाया था। उसे आराम करने की ज़रूरत भी महसूस हुई। यही नहीं, पौलुस ने भी लिखा कि शादी के रिश्ते में अपनी लैंगिक इच्छाएँ पूरी करना सही है।10. रोमियों 8:5, 6 में दिए शब्द “मन लगाने” का क्या मतलब है?
10 तो फिर “शरीर पर मन लगाने” से पौलुस का क्या मतलब था? रोमियों 8:5 में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘मन लगाना’ किया गया है उसका मतलब है, किसी बात पर पूरी तरह अपना दिल और दिमाग लगाना और उसके लिए योजना बनाना। एक विद्वान ने समझाया कि जो लोग शरीर से जुड़ी बातों पर मन लगाते हैं “वे उन बातों में गहरी दिलचस्पी लेते हैं, उन्हीं के बारे में बात करते रहते हैं,” वे अपनी ख्वाहिशें पूरी करने में लगे रहते हैं और उनके गुलाम बन जाते हैं।
11. कौन-सी बातें हमारे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी बन सकती हैं?
11 रोम के मसीहियों को यह जाँचना था कि वे किन बातों पर अपना मन लगा रहे थे। क्या वे “शरीर की बातों” पर मन लगा रहे थे? आज हमें भी खुद की जाँच करनी है कि क्या बात हमारे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। हम किस विषय पर बात करना पसंद करते हैं? हमें सबसे ज़्यादा क्या करना पसंद है? शायद कुछ लोग पाएँ कि उनका ध्यान अलग-अलग तरह की दाख-मदिरा पीने, अपना घर सजाने, नए-नए कपड़े खरीदने, अलग-अलग चीज़ों में पैसा लगाने और छुट्टियों में घूमने की योजना बनाने में लगा रहता है। ये बातें अपने आप में गलत नहीं क्योंकि ज़िंदगी में ये भी कुछ हद तक ज़रूरी हैं। उदाहरण के लिए, यीशु ने भी एक समय पर दाख-मदिरा बनायी थी और पौलुस ने तीमुथियुस से कहा था कि “थोड़ी दाख-मदिरा” पीया कर। (1 तीमु. 5:23; यूह. 2:3-11) लेकिन यीशु और पौलुस के लिए दाख-मदिरा सबसे ज़्यादा मायने नहीं रखती थी। हमारे बारे में क्या? हमें किस बात में सबसे ज़्यादा दिलचस्पी है?
12, 13. हम जिस बात पर अपना मन लगाते हैं वह इतना गंभीर मामला क्यों है?
12 खुद की जाँच करना ज़रूरी है। क्यों? क्योंकि पौलुस ने लिखा, “शरीर पर मन लगाने का मतलब मौत है।” (रोमि. 8:6) यह एक गंभीर बात है क्योंकि इससे परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूट सकता है और भविष्य में हमारी जान भी जा सकती है। फिर भी, पौलुस के कहने का यह मतलब नहीं था कि अगर कोई इंसान ‘शरीर पर मन लगाने लगता है’ तो उसकी मौत पक्की है। वह इंसान बदल सकता है। एक बार फिर कुरिंथ के उस बदचलन आदमी के बारे में सोचिए, जो अपने “शरीर” के मुताबिक जीने लगा था और जिसका बहिष्कार किया गया था। लेकिन वह बदल गया। उसने शरीर के पीछे जाना छोड़ दिया और सही राह पर चलने लगा।—2 कुरिं. 2:6-8.
13 अगर कुरिंथ के उस आदमी के लिए बदलना मुमकिन था, तो आज मसीहियों के लिए भी बदलना मुमकिन है। खासकर तब जब शायद उन्होंने उस हद तक गलत काम न किया हो जिस हद तक कुरिंथ के उस आदमी ने किया था। बेशक पौलुस ने ‘शरीर पर मन लगानेवालों’ के बारे में जो चेतावनी दी, उससे एक मसीही को ज़रूरी बदलाव करने का बढ़ावा मिलना चाहिए।
‘पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाना’
14, 15. (क) पौलुस ने किस बात पर मन लगाने की सलाह दी? (ख) “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” का क्या मतलब नहीं है?
14 पौलुस ने “शरीर पर मन लगाने” से खबरदार करने के बाद यह सलाह दी: “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने का मतलब जीवन और शांति है।” जीवन और शांति क्या ही बढ़िया इनाम हैं!
15 “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” का मतलब यह नहीं कि एक इंसान का रोज़मर्रा की मर. 6:3; 1 थिस्स. 2:9.
ज़िंदगी से कोई लेना-देना नहीं। न ही इसका यह मतलब है कि एक इंसान हमेशा यहोवा, बाइबल और अपनी आशा के बारे में सोचता रहे और उनके बारे में बात करता रहे। पहली सदी के मसीहियों पर गौर कीजिए। उन्होंने काफी हद तक एक आम ज़िंदगी जी। उन्होंने खाने-पीने का मज़ा लिया, शादी की, उनका अपना परिवार था और वे काम भी करते थे।—16. पौलुस की ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी काम क्या था?
16 लेकिन पौलुस और दूसरे मसीहियों ने रोज़मर्रा के कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह नहीं लेने दी। उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि पौलुस ने अपना गुज़ारा चलाने के लिए तंबू बनाने का काम किया। मगर यह काम उसकी ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी नहीं था। उसके लिए सबसे ज़रूरी काम था परमेश्वर की सेवा करना। उसने अपना पूरा ध्यान प्रचार करने और सिखाने में लगाया। (प्रेषितों 18:2-4; 20:20, 21, 34, 35 पढ़िए।) रोम के भाई-बहनों के लिए ज़रूरी था कि वे पौलुस की मिसाल पर चलें और हमें भी ऐसा करना चाहिए।—रोमि. 15:15, 16.
17. “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” के क्या फायदे हैं?
17 अगर हम यहोवा की सेवा पर ध्यान लगाए रखें तो हमारी ज़िंदगी कैसी होगी? रोमियों 8:6 साफ बताता है, “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने का मतलब जीवन और शांति है।” पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने में यह शामिल है कि हम यहोवा की सोच अपनाएँ और उसकी पवित्र शक्ति के मुताबिक अपनी सोच ढालें। यहोवा वादा करता है कि अगर हम ऐसा करेंगे तो हम आज खुश रह पाएँगे और भविष्य में हमेशा के लिए जी पाएँगे।
18. “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” से हमें कैसे शांति मिल सकती है?
18 पौलुस के कहने का क्या मतलब था कि “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” से शांति मिलती है? हर कोई शांति चाहता है खासकर मन की शांति, लेकिन कुछ ही लोग इसे हासिल कर पाते हैं। हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमें मन की सच्ची शांति दी है। इतना ही नहीं, परिवार के लोगों और मंडली के भाई-बहनों के साथ भी हम शांति बनाए रख पाते हैं। हम परिपूर्ण नहीं हैं इसलिए कभी-कभी भाई-बहनों के साथ हमारी कहा-सुनी हो सकती है। जब ऐसा होता है तो हम यीशु की सलाह मानते हैं, “अपने भाई के साथ सुलह कर।” (मत्ती 5:24) याद रखिए आपकी तरह आपके भाई-बहन भी ‘शांति देनेवाले परमेश्वर’ यहोवा की सेवा करते हैं।—रोमि. 15:33; 16:20.
19. हम कौन-सी अनोखी शांति का आनंद उठा पाते हैं?
19 “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” से हम एक और किस्म की शांति का आनंद उठा पाते हैं और वह है, परमेश्वर के साथ शांति का रिश्ता। भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा, “जिसका मन तुझ [यहोवा] में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है।”—यशा. 26:3; रोमियों 5:1 पढ़िए।
20. रोमियों अध्याय 8 में दी सलाह के लिए आप क्यों शुक्रगुज़ार हैं?
20 हमारी आशा चाहे स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर, हम सब रोमियों अध्याय 8 में दी बुद्धि-भरी सलाह से फायदा पा सकते हैं। हम इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हैं कि बाइबल हमें अपनी इच्छाओं पर ध्यान लगाने के बजाय यहोवा की सेवा पर ध्यान लगाने का बढ़ावा देती है। हम जानते हैं कि “पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगाने” से हमें एक शानदार इनाम मिलेगा। उसके बारे में पौलुस ने लिखा, “परमेश्वर जो तोहफा देता है वह हमारे प्रभु मसीह यीशु के ज़रिए हमेशा की ज़िंदगी है।”—रोमि. 6:23.