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क्या आप उस पार मकिदुनिया जा सकते हैं?

क्या आप उस पार मकिदुनिया जा सकते हैं?

क्या आप उस पार मकिदुनिया जा सकते हैं?

एशिया माइनर के बंदरगाह शहर त्रोआस में प्रेषित पौलुस को एक दर्शन मिला। दर्शन में उसने देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी उससे बिनती कर रहा है: “इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।” जैसे ही उसने यह दर्शन देखा, वह और उसके सफरी साथी ‘समझ गए कि परमेश्‍वर ने उन्हें मकिदुनिया के लोगों को खुशखबरी सुनाने का बुलावा दिया है।’ जब उन्होंने वहाँ जाकर प्रचार किया, तो नतीजा क्या हुआ? मकिदुनिया के सबसे जाने-माने शहर और रोमी उपनिवेश बस्ती, फिलिप्पी में लुदिया और उसके घरवाले विश्‍वासी बन गए। इसके बाद, शहर के कुछ और लोग भी विश्‍वासी बन गए।—प्रेषि. 16:9-15.

आज यहोवा के साक्षियों में भी पौलुस और उसके साथियों जैसा जोश देखने को मिलता है। कई भाई-बहन अपने खर्चे पर खुशी-खुशी ऐसी जगहों में जाकर रहने लगे हैं, जहाँ राज के प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, लीसा का बहुत मन था कि वह अपने जीवन में प्रचार काम को और ज़्यादा अहमियत दे। इसलिए वह कनाडा से केन्या जाकर रहने लगी। ट्रेवर और एमली भी कनाडा के रहनेवाले थे। वे मलावी में जा बसे ताकि प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा कर सकें। इंग्लैंड के पॉल और मैगी ने सोचा, ‘अब क्योंकि हम रिटायर हो गए हैं, यहोवा की सेवा में ज़्यादा करने का यही सुनहरा मौका है।’ इसलिए वे पूर्वी अफ्रीका चले गए। आपके बारे में क्या? क्या आपमें इन भाई-बहनों की तरह त्याग की भावना है? क्या आप भी दूसरी जगह जाकर सेवा करने के बारे में सोच सकते हैं? अगर हाँ, तो बाइबल के कौन-से सिद्धांत और कारगर सुझाव आपकी मदद कर सकते हैं, ताकि आपकी योजनाएँ सफल हों?

खुद की जाँच कीजिए

सबसे पहले आपको जाँचना होगा कि आप क्यों दूसरी जगह जाकर प्रचार करना चाहते हैं। यीशु ने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा यह है: “तुझे अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।” तो फिर दूसरे देश जाकर सेवा करने की वजह ये हैं कि आप यहोवा से प्यार करते हैं और चेला बनाने का काम पूरा करना चाहते हैं। यीशु ने यह भी कहा: “इसी की तरह यह दूसरी [आज्ञा] है, ‘तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।’” जब आपको अपने पड़ोसी यानी दूसरे इंसानों से प्यार होगा, तो आप दिल से उनकी मदद करना चाहेंगे। (मत्ती 22:36-39; 28:19, 20) दूसरी जगह जाकर सेवा करने में अकसर कड़ी मेहनत लगती है और त्याग करने पड़ते हैं। यह सिर्फ रोमांच के लिए किसी मुश्‍किल इलाके में जाकर सैर करने जैसा नहीं है। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि प्यार ही आपको इस सेवा के लिए उकसाए। नेदरलैंड्‌स के रहनेवाले रेमको और सुज़ैन, जो फिलहाल नामीबिया में सेवा कर रहे हैं, कहते हैं: “वह प्यार ही तो है जो हमें इस जगह से बाँधे हुए है।”

नामीबिया का एक सर्किट निगरान, भाई विली कहता है: “जो भाई-बहन अपना देश छोड़कर यहाँ सेवा करने आए, वे इसलिए कामयाब हो सके क्योंकि उन्होंने यह उम्मीद नहीं लगायी कि उनकी सेवा-सत्कार की जाएगी। इसके बजाय, वे यह सोचकर आए कि यहाँ के भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रचार करेंगे और इस काम में उनकी मदद करेंगे।”

अपने इरादों को जाँचने के बाद खुद से पूछिए: ‘अब तक मैंने क्या तजुरबा हासिल किया है जो दूसरे देश जाकर सेवा करने में मेरे काम आएगा? क्या मैं एक कुशल प्रचारक हूँ? मुझे कौन-कौन-सी भाषाएँ आती हैं? क्या मैं एक नयी भाषा सीखने के लिए तैयार हूँ?’ इन बातों पर अपने परिवार के साथ खुलकर चर्चा कीजिए। अपनी मंडली के प्राचीनों से सलाह-मशविरा कीजिए। और यहोवा से प्रार्थना करना मत भूलिए। इस तरह ईमानदारी से खुद की जाँच करने से आप जान पाएँगे कि क्या आप वाकई दूसरे देश जाकर सेवा करने के काबिल हैं और क्या आपमें इस सेवा के लिए मज़बूत इरादा है।—“खुद को जानिए” बक्स देखिए।

कहाँ सेवा करें

पौलुस को दर्शन में बताया गया कि वह मकिदुनिया जाकर सेवा करे। आज यहोवा हमें दर्शनों के ज़रिए निर्देशन नहीं देता। मगर इस पत्रिका और दूसरे साहित्य के ज़रिए हम जान सकते हैं कि किन-किन इलाकों में प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। तो सबसे पहले इन सभी जगहों की एक सूची बना लीजिए। अगर आप एक नयी भाषा नहीं सीख सकते या आप दूसरे देश में हमेशा के लिए नहीं रह सकते तो निराश मत होइए। आप ऐसी जगह सेवा करने की सोच सकते हैं, जहाँ की मुख्य भाषा आपको आती हो। इसके बाद कुछ ज़रूरी जानकारी इकट्ठा कीजिए, जैसे वीज़ा के लिए कौन-सी माँगें पूरी करनी हैं, वहाँ सफर के लिए क्या-क्या साधन उपलब्ध हैं, सुरक्षा के क्या इंतज़ाम हैं, रोज़मर्रा का खर्च कितना पड़ेगा और वहाँ की आबोहवा कैसी है। आपको उन भाई-बहनों से भी बात करके काफी मदद मिल सकती है जो ऐसी जगह जाकर बसे हैं। यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको एक अच्छा फैसला लेने में मदद दे। याद रखिए कि पौलुस और उसके साथियों को “पवित्र शक्‍ति ने . . . एशिया ज़िले में वचन सुनाने से मना किया था।” वे लोग बितूनिया में जाने की कोशिश कर रहे थे, मगर “यीशु ने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी।” इसी तरह यह तय करने में थोड़ा वक्‍त लग सकता है कि आप किस जगह पर एक असरदार सेवक साबित होंगे।—प्रेषि. 16:6-10.

अब तक आपने कुछ जगहों के बारे में सोच लिया होगा, जहाँ जाना आपके बस में है और जहाँ आप सेवा में असरदार हो सकते हैं। अगर आप दूसरे देशों में जाकर सेवा करने की सोच रहे हैं, तो उन देशों में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर को लिखिए। खत में यह बताइए कि गुज़रे वक्‍त में आपने किन-किन तरीकों से सेवा की थी, फिलहाल किन तरीकों से सेवा कर रहे हैं और क्या आप अभी मंडली में किसी ज़िम्मेदारी के पद पर हैं। आपके मन में जो-जो सवाल हैं, वे भी आप पूछ सकते हैं। जैसे, उस देश में गुज़र-बसर के लिए खर्चा कितना होगा, रहने के लिए आपको किस तरह की जगह मिल सकती है, स्वास्थ्य के लिए कैसी सुविधाएँ हैं और नौकरी की क्या-क्या गुंजाइश है। फिर अपनी चिट्ठी या चिट्ठियाँ मंडली की सेवा समिति को दीजिए। वे उसके साथ एक सिफारिश चिट्ठी रखकर आपके चुने हुए शाखा दफ्तर को भेज देंगे। मिलनेवाले जवाबों से आप फैसला कर सकते हैं कि आप कहाँ जाकर असरदार तरीके से सेवा कर पाएँगे।

भाई विली, जिसके बारे में पहले ज़िक्र किया गया था, कहता है: “जो लोग दूसरे देश में सेवा करने से पहले उस देश का दौरा करते हैं और जायज़ा लेते हैं कि कहाँ सेवा करने से उन्हें सचमुच खुशी मिलेगी, अकसर ऐसे लोग ही अपनी सेवा में कामयाब हुए हैं। एक जोड़े ने महसूस किया कि वे अलग-थलग इलाके में जाकर सेवा नहीं कर पाएँगे। इसलिए वे एक छोटे-से कसबे में जा बसे जहाँ प्रचारकों की ज़रूरत होने के साथ-साथ बुनियादी सहूलियतें भी उपलब्ध थीं। नतीजा, यह जोड़ा खुशी-खुशी वहाँ सेवा कर रहा है।”

नयी चुनौतियों का सामना करना

आप जिस माहौल में जीने के आदी हैं, उसे छोड़कर एक बिलकुल नए माहौल में रहना इतना आसान नहीं होगा। बेशक आपके सामने कई चुनौतियाँ आएँगी। लीसा, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, कहती है, “तनहाई इस तरह आ घेरती है कि उससे जूझना बहुत मुश्‍किल हो सकता है।” इसका सामना करने में क्या बात उसकी मदद करती है? अपने नए इलाके में, मंडली के भाई-बहनों से करीबी रिश्‍ता बनाए रखना उसकी कामयाबी का राज़ है। उसने मंडली में सभी के नाम जानने का लक्ष्य रखा है। इसलिए वह सभाओं के लिए जल्दी आती है और सभा खत्म होने के बाद भी काफी देर तक रुकती है, ताकि भाई-बहनों से बातचीत कर सके। लीसा कई लोगों के साथ प्रचार में हिस्सा लेती है, उन्हें घर बुलाती है और इस तरह उसने बहुत-से नए दोस्त बनाए हैं। वह कहती है, “मैंने जो त्याग किए हैं, मुझे उसका कोई गम नहीं क्योंकि यहोवा ने मुझे ढेरों आशीषें दी हैं।”

पॉल और मैगी ने घर-गृहस्थी सँभालने में 30 साल बिता दिए। जब उनके बच्चे बड़े हो गए, तो उन्होंने दूसरे देश जाकर सेवा करने का फैसला किया। पॉल कहता है, “हमें लगा कि अपना साज़ो-सामान छोड़कर जाना हमारे लिए बहुत मुश्‍किल होगा, मगर यह इतना मुश्‍किल नहीं था। पर अपने परिवारवालों से जुदा होना हमारे लिए सच में बहुत बड़ी चुनौती थी। हमने सोचा भी नहीं था कि यह जुदाई इतनी दर्दनाक होगी। हम हवाई जहाज़ पर बहुत रोए। ऐसे में यह मान बैठना बहुत आसान होता है कि शायद यह सेवा हमसे नहीं हो पाएगी। लेकिन हमने यहोवा पर भरोसा रखा और आगे बढ़ते चले गए। इसके अलावा, नए दोस्त बनाने से इस सेवा में लगे रहने का हमारा इरादा और भी बुलंद हुआ।”

ग्रेग और क्रिस्टल ने कनाडा से नामीबिया जाने का फैसला किया, क्योंकि वे अँग्रेज़ी बोलते थे जो उस देश की सरकारी भाषा है। लेकिन बाद में उन्होंने पाया कि वहाँ की एक प्रांतीय भाषा सीखना उनके बहुत काम आएगा। वे कहते हैं, “नयी जगह और नए लोगों के बीच कभी-कभी हम निराश हो जाते थे। लेकिन प्रांतीय भाषा सीखने के बाद ही हम यहाँ के रहन-सहन और संस्कृति को अच्छी तरह समझ पाए। मंडली के भाई-बहनों के साथ मेल-जोल रखने से हमें नयी जगह में खुद को ढालने में मदद मिली।”

अगर हमारे अंदर इस तरह की नम्रता और हालात के मुताबिक खुद को ढालने की इच्छा हो, तो इसका अच्छा असर वहाँ के भाई-बहनों पर पड़ेगा जहाँ हम सेवा कर रहे हैं। आयरलैंड में पली-बड़ी जैनी आज भी उन परिवारों को याद करती है जो दूसरी जगहों से उसके देश में सेवा करने आए थे। वह कहती है, “उन्होंने सही मायनों में देने की भावना दिखायी। वे दूसरों की सेवा करने आए थे, न कि खुद की सेवा करवाने। उनकी खुशी और उनके जोश ने मेरे मन में इच्छा जगायी कि मैं भी उन जगहों में जाकर सेवा करूँ, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है।” जैनी अब अपने पति के साथ गेम्बिया में मिशनरी सेवा कर रही है।

यहोवा की आशीष सही मायनों में “धनी” बनाती है

मकिदुनिया में पौलुस की सेवा इतनी कामयाब रही कि वह उसके लिए एक यादगार अनुभव बन गयी! लगभग दस साल बाद उसने फिलिप्पी के भाइयों को लिखा: “मैं जब-जब तुम्हें याद करता हूँ, तब-तब अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ।”—फिलि. 1:3.

ट्रेवर और एमली भी ऐसा ही महसूस करते हैं। उन्होंने मलावी में सेवा की थी और बाद में उन्हें वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड के लिए बुलाया गया था। वे कहते हैं: “हम कभी-कभी सोचते थे कि क्या हम सही कर रहे हैं। मगर सच तो यह था कि हम बहुत खुश थे। हम दोनों एक-दूसरे के और भी करीब आ गए और हमें यहोवा से आशीषें मिलीं।” ग्रेग और क्रिस्टल, जिनका पहले ज़िक्र किया गया था, अपनी सेवा के बारे में कहते हैं, “इसके सिवा हम कुछ और करने की सोच भी नहीं सकते।”

माना कि हर कोई दूसरे देश में जाकर सेवा नहीं कर सकता। लेकिन कुछ लोग शायद अपने ही देश में ऐसी जगह जाकर सेवा करें, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। दूसरे भाई-बहन अपने घर की पासवाली मंडलियों में जाकर सेवा करने का लक्ष्य रख सकते हैं। इन सबमें ज़रूरी बात यह है कि आप अपने हालात के मुताबिक यहोवा की सेवा में अपना भरसक करें। (कुलु. 3:23) जब आप ऐसा करेंगे, तो ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे ये शब्द आपके मामले में सच साबित होंगे: “यहोवा की आशीष ही धनी बनाती है और वह उसके साथ कोई दुःख नहीं देता।”—नीति. 10:22, NW.

[पेज 5 पर बक्स/तसवीर]

खुद को जानिए

अगर आप जानना चाहते हैं कि आप दूसरे देश जाकर प्रचार कर सकते हैं या नहीं, तो आगे दिए सवालों पर विचार कीजिए और परमेश्‍वर से प्रार्थना करके ईमानदारी से अपने हालात का जायज़ा लीजिए। इस बारे में बीते सालों के प्रहरीदुर्ग अंकों में अच्छी जानकारी दी गयी है। उन्हें पढ़ने से आपको काफी मदद मिल सकती है।

• क्या मैं आध्यात्मिक बातों को अहमियत देनेवाला इंसान हूँ? —“खुशी में योग देनेवाले कदम” (अक्टूबर 15, 1997, पेज 6)

• क्या मैं एक कुशल प्रचारक हूँ?—“पायनियर सेवा में कैसे सफल हों” (मई 15, 1989, पेज 21, अँग्रेज़ी)

• क्या मैं अपने परिवारवालों और दोस्तों से दूर रह सकता हूँ?—“क्या आप विदेश में सेवा कर सकते हैं?” (अक्टूबर 15, 1999, पेज 26)

• क्या मैं एक नयी भाषा सीख सकता हूँ?—“विदेशी भाषा बोलनेवाली कलीसिया में जाकर सेवा करना” (मार्च 15, 2006, पेज 17)

• क्या मैं दूसरे देश जाकर अपना खर्च खुद उठा पाऊँगा?—“क्या आप विदेश में सेवा कर सकते हैं?” (अक्टूबर 15, 1999, पेज 23)

[पेज 6 पर तसवीर]

हालात के मुताबिक खुद को ढालने की इच्छा और नम्रता का उस इलाके के भाई-बहनों पर अच्छा असर हो सकता है जहाँ आप सेवा करने जाते हैं

[पेज 7 पर तसवीर]

जो दूसरों की सेवा करने के इरादे से आते हैं, वे ही कामयाब होते हैं