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शादी परमेश्‍वर का तोहफा है, इसकी कदर कीजिए

शादी परमेश्‍वर का तोहफा है, इसकी कदर कीजिए

शादी परमेश्‍वर का तोहफा है, इसकी कदर कीजिए

“इस कारण पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।”—उत्प. 2:24.

1. हमें क्यों यहोवा को आदर देना चाहिए?

 शादी का इंतज़ाम करनेवाले यहोवा परमेश्‍वर का हमें आदर करना चाहिए। वह हमारा सृष्टिकर्ता और पिता है और वही पूरी दुनिया का मालिक है इसलिए यह कहना सही होगा कि “हरेक अच्छा तोहफा और हरेक उत्तम देन” उसी की तरफ से मिलती है। (याकू. 1:17; प्रका. 4:11) यह उसके महान प्यार का सबूत है। (1 यूह. 4:8) हर चीज़ जो उसने हमें सिखायी है, हर चीज़ जो वह हमसे चाहता है और हर चीज़ जो उसने हमें दी है, वह सब हमारी भलाई और फायदे के लिए है।—यशा. 48:17.

2. पहले जोड़े को यहोवा ने क्या निर्देश दिए थे?

2 इन सब ‘अच्छे’ तोहफों में शादी भी परमेश्‍वर से मिला एक तोहफा है। जब यहोवा ने पहली शादी करायी तो उसने आदम और हव्वा को कुछ खास निर्देश दिए ताकि उनकी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब हो। (मत्ती 19:4-6 पढ़िए।) अगर वे परमेश्‍वर की बात मानते तो हमेशा खुश रहते। लेकिन उन्होंने बेवकूफी करके परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ दी, जिसके उन्हें भयानक अंजाम भुगतने पड़े।—उत्प. 3:6-13, 16-19, 23.

3, 4. (क) आज कई लोग कैसे शादी और यहोवा दोनों का अपमान कर रहे हैं? (ख) इस लेख में हम किन उदाहरणों पर गौर करेंगे?

3 उस पहले जोड़े की तरह आज भी कई लोग शादी के फैसले करते वक्‍त यहोवा की आज्ञाओं को ताक पर रख देते हैं। कुछ लोग तो शादी के इंतज़ाम को ही ठुकरा देते हैं और दूसरे हैं जो अपनी सहूलियत के हिसाब से शादी के बारे में अपना ही नज़रिया पेश करते हैं। (रोमि. 1:24-32; 2 तीमु. 3:1-5) वे इस हकीकत को नज़रअंदाज़ करते हैं कि शादी परमेश्‍वर की तरफ से एक तोहफा है और ऐसा करके वे परमेश्‍वर यहोवा का भी अपमान करते हैं।

4 कभी-कभी यहोवा के लोग भी शादी के इंतज़ाम के प्रति सही नज़रिया नहीं रखते। कुछ मसीही जोड़े अलग होने का फैसला कर लेते हैं या बिना किसी बाइबल के आधार पर तलाक ले लेते हैं। इससे कैसे बचा जा सकता है? उत्पत्ति 2:24 में पायी जानेवाली यहोवा की आज्ञा से आज मसीही कैसे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी मज़बूत कर सकते हैं? और जो लोग शादी करने के बारे में सोच रहे हैं, वे कैसे अपने आपको तैयार कर सकते हैं? आइए बाइबल में बतायी तीन कामयाब शादियों के बारे में गौर करें जिससे पता चलता है कि शादी के बंधन को मज़बूत करने के लिए यहोवा का आदर करना कितना ज़रूरी है।

वफादार बने रहिए

5, 6. किस हालात ने जकर्याह और इलीशिबा की परीक्षा ली और उनकी वफादारी का उन्हें क्या इनाम मिला?

5 जकर्याह और इलीशिबा ने हमेशा सही कदम उठाया। जब उन्होंने शादी की तब वे दोनों ही परमेश्‍वर के वफादार सेवक थे। जकर्याह ने याजक के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभायी और पति-पत्नी दोनों ने परमेश्‍वर के नियमों को मानने की पूरी कोशिश की। उनके पास यहोवा का शुक्रगुज़ार होने की कई वजह थीं। लेकिन अगर आप यहूदा में उनके घर गए होते तो जल्द ही जान जाते कि वहाँ कुछ तो कमी है। उनके बच्चे नहीं थे। इलीशिबा बाँझ थी और दोनों की उम्र ढल चुकी थी।—लूका 1:5-7.

6 प्राचीन इसराएल में बच्चे होना एक आशीष की बात समझी जाती थी और अकसर परिवार काफी बड़े होते थे। (1 शमू. 1:2, 6, 10; भज. 128:3, 4) उस समय अगर एक इसराएली स्त्री को बच्चे नहीं होते थे तो उसका पति उसे तलाक दे देता था, जो दरअसल बेवफाई होती। लेकिन जकर्याह अपनी पत्नी का वफादार रहा। उसने अपनी पत्नी से छुटकारा पाने की कोई तरकीब नहीं निकाली, न ही इलीशिबा ने ऐसा किया। हालाँकि बच्चे न होने की वजह से वे दुखी थे, मगर दोनों वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहे। समय बीतने पर यहोवा ने चमत्कार करके उन्हें बुढ़ापे में एक बेटा दिया जो उनके लिए बहुत बड़ी आशीष थी।—लूका 1:8-14.

7. इलीशिबा ने कैसे एक और हालात में साबित किया कि वह अपने पति की वफादार है?

7 इलीशिबा ने एक और तरीके से भी वफादारी दिखायी जो काबिले-तारीफ है। जब उसका बेटा, यूहन्‍ना पैदा हुआ तब एक स्वर्गदूत से सवाल-जवाब करने की वजह से जकर्याह की बोलने की शक्‍ति ले ली गयी। फिर भी जकर्याह ने किसी तरह अपनी पत्नी को बताया कि यहोवा के स्वर्गदूत ने उनके बेटे का नाम “यूहन्‍ना” रखने को कहा है। पड़ोसी और रिश्‍तेदार बच्चे का नाम पिता के नाम पर रखना चाहते थे। लेकिन इलीशिबा ने वफादारी से अपने पति के फैसले को माना और कहा: “नहीं! उसका नाम यूहन्‍ना होगा।”—लूका 1:59-63.

8, 9. (क) वफादारी दिखाने से कैसे शादी का बंधन मज़बूत होता है? (ख) किन खास तरीकों से पति और पत्नी एक-दूसरे को वफादारी दिखा सकते हैं?

8 जकर्याह और इलीशिबा की तरह आज भी शादीशुदा जोड़ों को निराशाओं और दूसरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर पति-पत्नी एक-दूसरे के वफादार न हों, तो शादी ज़्यादा दिन तक नहीं टिकेगी। अश्‍लील तसवीरें देखने, इश्‍कबाज़ी या व्यभिचार करने, या फिर दूसरी बुरी बातों से पति-पत्नी एक-दूसरे का विश्‍वास खो सकते हैं जिसे फिर कभी नहीं पाया जा सकता। जब विश्‍वास टूटता है तो प्यार भी धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। शादी के बंधन में वफादारी चारदीवारी का काम करती है। यह अनचाहे लोगों और बुराइयों को परिवार में घुसने नहीं देती, जिससे कुछ हद तक सुरक्षा मिलती है। इसलिए जब पति और पत्नी एक-दूसरे के वफादार रहते हैं तो वे बेखौफ होकर ज़िंदगी बिता सकते हैं और खुलकर एक-दूसरे से अपने दिल की बात कह सकते हैं। इस तरह वे अपना प्यार और गहरा कर सकते हैं। जी हाँ, एक-दूसरे के वफादार होना बहुत ज़रूरी है।

9 यहोवा ने आदम से कहा था: “पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा।” (उत्प. 2:24) इसका क्या मतलब है? शादी के बाद पुराने दोस्तों और रिश्‍तेदारों के साथ मेल-जोल में कुछ फेर-बदल करने की ज़रूरत होती है। पहले शायद वे अपने दोस्तों और रिश्‍तेदारों को ज़्यादा अहमियत देते हों, लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर सकते। उन्हें अपनी नयी गृहस्थी पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत होगी। इसके अलावा जब परिवार में फैसले लेने होते हैं या कोई अनबन होती है, तो उन्हें अपने माता-पिता को बीच में दखल देने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए। अब पति-पत्नी को एक-दूसरे से मिले रहना चाहिए। परमेश्‍वर की यही आज्ञा है।

10. एक-दूसरे के वफादार बने रहने में क्या बात पति-पत्नी की मदद कर सकती है?

10 जिन परिवारों में पति-पत्नी अलग-अलग धर्मों को मानते हैं, वहाँ भी वफादारी दिखाने से आशीषें मिलती हैं। एक बहन जिसका पति साक्षी नहीं है, वह बताती है: “मैं यहोवा का बहुत शुक्रिया अदा करती हूँ कि उसने मुझे सिखाया कि मुझे कैसे अपने पति के अधीन रहना है और उसे गहरा आदर दिखाना है। हमारी शादी को 47 साल हो गए हैं मगर वफादार रहने की वजह से हम अब भी एक-दूसरे को प्यार और आदर दिखाते हैं।” (1 कुरिं. 7:10, 11; 1 पत. 3:1, 2) इसलिए अपने साथी को यह भरोसा दिलाने की पूरी कोशिश कीजिए कि आप उसी के हैं। मौके ढूँढ़िए ताकि आप अपनी बातों और कामों से उसे यकीन दिला सकें कि उससे बढ़कर दुनिया में आपके लिए और कोई नहीं। जितना हो सके कोशिश कीजिए कि आपके और आपके साथी की ज़िंदगी में किसी तीसरे इंसान या चीज़ के लिए कोई जगह न हो। (नीतिवचन 5:15-20 पढ़िए।) रॉन और जेनैट की शादी को 35 से भी ज़्यादा साल हो गए हैं, उनका कहना है: “हमने हमेशा वही किया जो परमेश्‍वर चाहता है, इसलिए हमारी शादीशुदा ज़िंदगी कामयाब और खुशहाल रही है।”

एकता शादी का बंधन मज़बूत करती है

11, 12. अक्विला और प्रिस्किल्ला ने कैसे (क) घर के कामों में (ख) रोज़ी-रोटी चलाने में (ग) मसीही सेवा में एक-दूसरे का साथ दिया?

11 प्रेषित पौलुस ने जब भी अपने करीबी दोस्तों अक्विला और प्रिस्किल्ला का ज़िक्र किया तो दोनों का नाम एक-साथ लिया। जैसा कि परमेश्‍वर ने कहा कि पति-पत्नी को “एक ही तन” होना चाहिए तो इस मामले में इस जोड़े ने एक बेहतरीन मिसाल रखी। (उत्प. 2:24) वे दोनों हमेशा घर के कामों में, रोज़ी-रोटी चलाने में और मसीही सेवा में एक-दूसरे का साथ देते थे। उदाहरण के लिए जब पौलुस पहली बार कुरिंथ पहुँचा तो अक्विला और प्रिस्किल्ला ने बड़े प्यार से उसे अपने घर में रहने के लिए बुलाया। फिर कुछ समय तक पौलुस ने अपने सारे काम वहीं से किए। कुछ समय बाद यह जोशीला जोड़ा इफिसुस चला गया। वहाँ उन्होंने अपने घर में सभाएँ रखीं और अपुल्लोस जैसे नए लोगों को आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दी। (प्रेषि. 18:2, 18-26) फिर वे रोम चले गए और वहाँ भी उन्होंने अपने घर के दरवाज़े सभाओं के लिए खोल दिए। उसके बाद वे दोनों इफिसुस लौट आए, जहाँ उन्होंने भाइयों की हिम्मत बढ़ायी।—रोमि. 16:3-5.

12 कुछ समय के लिए अक्विला और प्रिस्किल्ला ने पौलुस के साथ तंबू बनाने का काम किया, जो उनका भी पेशा था। इस पेशे में भी वे बिना झगड़ा किए या होड़ लगाए मिलकर काम करते थे। (प्रेषि. 18:3) मगर हाँ, मसीही कामों में एक-साथ वक्‍त बिताने से ही उनकी शादी का बंधन मज़बूत हुआ। चाहे वे कुरिंथ में रहे हों, इफिसुस में या रोम में, वे ‘यीशु के सहकर्मी’ के तौर पर जाने गए। (रोमि. 16:3) वे जहाँ भी गए उन्होंने साथ-साथ राज प्रचार का काम किया।

13, 14. (क) किन हालात में शादी का बंधन टूट सकता है? (ख) शादीशुदा जोड़े “एक ही तन” होने के नाते अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने के लिए क्या कर सकते हैं?

13 जी हाँ, जब दोनों के लक्ष्य एक होते हैं और वे मिलकर काम करते हैं, तो शादी मज़बूत होती है। (सभो. 4:9, 10) लेकिन दुख की बात है कि कई जोड़े बहुत कम वक्‍त साथ बिताते हैं। दोनों अलग-अलग नौकरी करते हैं और सारा दिन एक-दूसरे से अलग रहते हैं। दूसरे हैं जिन्हें काम के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है या वे नौकरी के लिए परदेस में अकेले बस जाते हैं ताकि घर पर पैसा भेज सकें। कुछ पति-पत्नी साथ रहते हुए भी अलग रहते हैं क्योंकि उनका ज़्यादातर वक्‍त टीवी देखने, अपने शौक पूरे करने, खेल-कूद, वीडियो गेम्स या इंटरनेट पर गुज़रता है। क्या आपके परिवार में भी ऐसा ही होता है? अगर हाँ, तो क्या आप अपने हालात में फेरबदल करके ज़्यादा वक्‍त साथ बिता सकते हैं? क्या रोज़मर्रा के कुछ काम साथ मिलकर किए जा सकते हैं जैसे खाना बनाना, बरतन धोना या बगीचे की देखभाल करना? क्या आप मिलकर बच्चों या अपने बुज़ुर्ग माता-पिता का खयाल रख सकते हैं?

14 इन सबसे बढ़कर आप नियमित तौर पर यहोवा की उपासना से जुड़े काम साथ मिलकर कर सकते हैं। मिलकर पारिवारिक उपासना करने और रोज़ाना बाइबल वचनों पर चर्चा करने से आपके परिवार को एक-जैसी सोच और एक-जैसे लक्ष्य रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा साथ-साथ प्रचार में जाइए। अगर मुनासिब हो तो एक साथ पायनियर सेवा कीजिए, तब भी अगर आपको अपने हालात की वजह से एक साल या एक महीने ही क्यों न पायनियर सेवा करने का मौका मिले। (1 कुरिंथियों 15:58 पढ़िए।) एक बहन जिसने अपने पति के साथ पायनियर सेवा की, वह कहती है: “मसीही सेवा के दौरान हमें एक-साथ वक्‍त बिताने और बातचीत करने का मौका मिलता था। दूसरों की आध्यात्मिक मदद करना ही हम दोनों का लक्ष्य था। मुझे लगता था कि हमारी जोड़ी कमाल की थी! मैं खुद को उनके करीब महसूस करती थी सिर्फ पत्नी के तौर पर नहीं बल्कि एक दोस्त के तौर पर भी।” जब आप साथ मिलकर काम करते हैं तो धीरे-धीरे आपकी पसंद-नापसंद, आपकी आदतें, साथ ही ज़रूरी और गैर ज़रूरी कामों के बारे में आपकी सोच एक-दूसरे से मेल खाने लगती है। ठीक जैसे “एक ही तन” होने के नाते, अक्विला और प्रिस्किल्ला की सोच, काम और उनकी भावनाएँ काफी हद तक एक जैसी थीं।

परमेश्‍वर को पहली जगह दीजिए

15. एक कामयाब शादी का क्या राज़ है? समझाइए।

15 यीशु जानता था कि शादी में परमेश्‍वर को पहली जगह देना बहुत ज़रूरी है। उसने देखा था कि यहोवा ने पहली शादी करायी थी। वह इस बात का भी चश्‍मदीद गवाह था कि जब तक आदम-हव्वा ने परमेश्‍वर की बात मानी वे खुश रहे, पर जब उन्होंने उसकी आज्ञा तोड़ दी तो उन्हें बुरे अंजाम भुगतने पड़े। इसलिए लोगों को सिखाते वक्‍त यीशु ने अपने पिता के निर्देशन को दोहराया जो उत्पत्ति 2:24 में दिया गया है। उसने यह भी कहा: “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” (मत्ती 19:6) इसलिए आज भी एक कामयाब और खुशहाल शादी का राज़ है, यहोवा को गहरा आदर दिखाना। इस मामले में धरती पर यीशु के माता-पिता यूसुफ और मरियम ने एक बेहतरीन मिसाल रखी।

16. यूसुफ और मरियम ने कैसे दिखाया कि वे अपने परिवार में परमेश्‍वर को पहली जगह देते हैं?

16 यूसुफ, मरियम के साथ बहुत प्यार और आदर से पेश आता था। उसने तब भी ऐसा किया जब उसे पता चला कि मरियम गर्भवती है, हालाँकि तब तक स्वर्गदूत ने उसे बताया नहीं था कि मरियम के साथ क्या घटना घटी है। (मत्ती 1:18-20) दोनों पति-पत्नी ने सम्राट के फरमान को माना, साथ ही मूसा के नियम का भी अच्छी तरह पालन किया। (लूका 2:1-5, 21, 22) हालाँकि यरूशलेम के त्योहार में सिर्फ पुरुषों से जाने की माँग की गयी थी, मगर यूसुफ और मरियम अपने पूरे परिवार को लेकर हर साल यरूशलेम जाते थे। (व्यव. 16:16; लूका 2:41) इन और दूसरे तरीकों से परमेश्‍वर से प्यार करनेवाले इस जोड़े ने यहोवा को खुश करने की कोशिश की और आध्यात्मिक कामों के लिए गहरा आदर दिखाया। इसलिए ताज्जुब नहीं कि क्यों यहोवा ने धरती पर अपने बेटे की देखभाल के लिए इस जोड़े को चुना।

17, 18. (क) किन तरीकों से पति-पत्नी अपने परिवार में परमेश्‍वर को पहली जगह दे सकते हैं? (ख) इससे उन्हें क्या फायदा होगा?

17 क्या आप अपने परिवार में परमेश्‍वर को पहली जगह देते हैं? मिसाल के लिए, जब आपको बड़े फैसले करने होते हैं तो क्या आप उस बारे में पहले बाइबल सिद्धांतों को जानने की कोशिश करते हैं, क्या उस बारे में प्रार्थना करते हैं और फिर प्रौढ़ मसीहियों से सलाह लेते हैं? या फिर आप अपनी ही समझ या परिवारवालों और दोस्तों की राय के आधार पर अपनी समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करते हैं? शादी और पारिवारिक जीवन के बारे में विश्‍वासयोग्य दास ने अपने साहित्य में जो सुझाव दिए हैं, क्या आप उन पर अमल करने की कोशिश करते हैं? या फिर आप उन सलाहों पर चलने की कोशिश करते हैं जो आमतौर पर आपके इलाके में मानी जाती हैं या दुनियावी किताबों में छापी जाती हैं? क्या आप नियमित तौर पर साथ मिलकर प्रार्थना और अध्ययन करते हैं? क्या आप एक-साथ आध्यात्मिक लक्ष्य रखते हैं और परिवार के लिए ज़रूरी और गैर ज़रूरी बातों के बारे में बात करते हैं?

18 रेमंड नाम के एक भाई ने अपनी शादी के 50 साल खुशी-खुशी बिताए हैं। उसका कहना है: “हमारे सामने आज तक ऐसी कोई समस्या नहीं आयी, जिसे हम न सुलझा सके हों, क्योंकि हमने यहोवा को अपनी शादी में ‘डोरी के तीसरे तागे’ की तरह रखा है।” (सभोपदेशक 4:12 पढ़िए।) डैनी और ट्रीना भी इस बात से सहमत हैं। वे कहते हैं: “यहोवा की सेवा साथ-साथ करने की वजह से हमारी शादी का बंधन और मज़बूत हुआ है।” उनकी शादी को 34 साल हो गए हैं और वे दोनों बहुत खुश हैं। अगर आप हमेशा यहोवा को अपनी शादी में पहली जगह देंगे तो वह इसे कामयाब बनाने में आपकी मदद करेगा और बहुत आशीष देगा।—भज. 127:1.

परमेश्‍वर से मिले तोहफे का आदर करते रहिए

19. परमेश्‍वर ने क्यों शादी का तोहफा दिया?

19 आज दुनिया में बहुतों के लिए सिर्फ अपनी खुशी ही मायने रखती है। लेकिन यहोवा के सेवकों का शादी के बारे में नज़रिया अलग होता है। वे जानते हैं कि शादी यहोवा के मकसद को आगे बढ़ाने के लिए उसकी तरफ से मिला एक तोहफा है। (उत्प. 1:26-28) अगर आदम और हव्वा ने इस तोहफे की कदर की होती तो आज पूरी धरती फिरदौस बन गयी होती, जिसमें परमेश्‍वर के धर्मी सेवक खुशी-खुशी ज़िंदगी बिताते।

20, 21. (क) हमें शादी को एक पवित्र बंधन क्यों समझना चाहिए? (ख) अगले हफ्ते हम किस तोहफे के बारे में अध्ययन करेंगे?

20 सबसे बढ़कर परमेश्‍वर के सेवक मानते हैं कि शादीशुदा ज़िंदगी उन्हें यहोवा की महिमा करने का मौका देती है। (1 कुरिंथियों 10:31 पढ़िए।) जैसा कि हमने देखा, वफादारी दिखाना, एकता बनाए रखना और परमेश्‍वर को शादी में पहली जगह देना यहोवा को भाता है और इससे शादी मज़बूत होती है। इसलिए चाहे हम शादी करने की सोच रहे हों, उसे मज़बूत करना चाहते हों या उसे टूटने से बचाने की कोशिश कर रहे हों, हमें सबसे पहले यह समझना चाहिए कि शादी परमेश्‍वर का एक पवित्र इंतज़ाम है। और अगर हम इस बात को ध्यान में रखें तो हम हमेशा शादी से ताल्लुक रखनेवाला हर फैसला परमेश्‍वर के वचन के आधार पर करेंगे। इस तरह हम न सिर्फ शादी के तोहफे के लिए बल्कि इस तोहफे को देनेवाले परमेश्‍वर यहोवा के लिए भी आदर दिखाएँगे।

21 बेशक शादी ही एक ऐसा तोहफा नहीं जो यहोवा ने हमें दिया है। और न ही सिर्फ इसी से हमें खुशी मिल सकती है। अगले लेख में हम एक और बेशकीमती तोहफे के बारे में देखेंगे और वह है, कुँवारेपन का तोहफा।

आप कैसे जवाब देंगे?

• वफादारी का पति-पत्नी पर क्या असर होना चाहिए?

• मिलकर काम करने से कैसे शादी का बंधन मज़बूत होता है?

• किन तरीकों से शादीशुदा लोग परमेश्‍वर को पहली जगह दे सकते हैं?

• शादी की शुरूआत करनेवाले यहोवा को हम कैसे आदर दे सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 15 पर तसवीरें]

मिलकर काम करने से पति-पत्नी का रिश्‍ता और मज़बूत होता है