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हर परीक्षा पार करने के लिए ताकत से भरपूर

हर परीक्षा पार करने के लिए ताकत से भरपूर

हर परीक्षा पार करने के लिए ताकत से भरपूर

“जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्‍ति मिलती है।”—फिलि. 4:13.

1. यहोवा के लोगों पर तरह-तरह की मुसीबतें क्यों आती हैं?

 यहोवा के लोगों पर तरह-तरह की मुसीबतें आना कोई नयी बात नहीं है। कुछ परीक्षाएँ हमारी अपनी खामियों की वजह से आती हैं, तो कुछ इस दुष्ट दुनिया की वजह से। और कुछ हम पर उस दुश्‍मनी की वजह से आती हैं, जो परमेश्‍वर के सेवकों और उनसे बैर रखनेवालों के बीच बरसों से चली आ रही है। (उत्प. 3:15) परमेश्‍वर शुरू से ही अपने वफादार सेवकों की मदद करता आया है ताकि वे अपने विश्‍वास की वजह से आनेवाले ज़ुल्म, साथियों के दबाव और हर तरह की मुसीबत का सामना कर सकें। आज भी उसकी पवित्र शक्‍ति हमें ऐसा करने की ताकत दे सकती है।

धार्मिक अत्याचार सहने के लिए ताकत

2. धार्मिक अत्याचार का क्या मकसद होता है और वे किन तरीकों से ढाए जाते हैं?

2 जब किसी इंसान को उसके विश्‍वास की वजह से सताया या जानबूझकर चोट पहुँचायी जाती है तो उसे धार्मिक अत्याचार कहते हैं। इसके पीछे दुश्‍मन का मकसद होता है, उस इंसान की खराई तोड़ना, उसके धार्मिक विश्‍वासों को फैलने से रोकना, यहाँ तक कि उस धर्म का नामो-निशान मिटा देना। ज़ुल्म कई तरीकों से ढाए जाते हैं, कभी-कभी सीधे तौर पर तो कभी पीछे से छिपकर। बाइबल बताती है कि शैतान भी दोनों तरीकों से हमला करता है, कभी सिंह की तरह सामने से, तो कभी साँप की तरह चलाकी से।भजन 91:13 पढ़िए।

3. शैतान कैसे शेर और साँप की तरह हम पर हमला करता है?

3 शैतान अकसर एक खूँखार शेर की तरह सामने से हमला करता है। वह हमारे खिलाफ हिंसा की आग भड़काता, हमें जेल में डलवाता, यहाँ तक कि हमारे काम पर पाबंदी लगवाता है। (भज. 94:20) यहोवा के साक्षियों की इयरबुक में आज के ज़माने के साक्षियों के काम के बारे में बताया जाता है, जिनमें शैतान के ऐसे ही दाँव-पेंचों के किस्से पढ़ने को मिलते हैं। कई जगहों में गुस्से से पागल भीड़ ने, पादरियों या कट्टरपंथी नेताओं के बहकावे में आकर यहोवा के लोगों के साथ बुरा सलूक किया है। इस वजह से कुछ लोगों ने यहोवा की सेवा करनी छोड़ दी है। शैतान कभी-कभी धूर्त साँप की तरह छिपकर भी वार करता है। वह लोगों के दिमाग में ज़हर घोलकर धोखे से अपनी ख्वाहिशें पूरी करवा लेता है। उसके ऐसे हमले का मकसद होता है, हमें आध्यात्मिक रूप से भ्रष्ट करना या कमज़ोर बनाना। मगर हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से इन दोनों तरह के हमलों का सामना कर सकते हैं।

4, 5. ज़ुल्मों का सामना करने के लिए सबसे अच्छी तैयारी कैसे की जा सकती है और क्यों? एक मिसाल दीजिए।

4 कुछ लोगों का मानना है कि अगर वे पहले से इसकी कल्पना करें कि उन पर किस तरह के ज़ुल्म ढाए जाएँगे तो वे उन ज़ुल्मों का सामना करने के लिए तैयार हो सकेंगे। लेकिन हम यह नहीं जानते कि कल हमारे साथ क्या होगा। तो क्या ऐसी बातों के बारे में कल्पना करना सही होगा जो शायद हमारे साथ कभी घटें ही ना? लेकिन एक चीज़ हम कर सकते हैं। हम वफादार लोगों के उदाहरणों पर मनन कर सकते हैं। हम जानते हैं कि कई लोगों ने ज़ुल्मों का सामना कामयाबी से किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने बाइबल में दर्ज़ वफादार जनों, साथ ही यीशु की सिखायी बातों और उसके उदाहरण पर मनन किया था। इससे वे यहोवा के लिए अपना प्यार और गहरा कर पाए और इस प्यार ने उन्हें हर तरह की परीक्षा का सामना करने की ताकत दी।

5 मलावी में रहनेवाली हमारी दो बहनों की मिसाल पर गौर कीजिए। गुस्से से पागल भीड़ ने उन्हें पीटा, उनके कपड़े फाड़ दिए और उन्हें धमकी दी कि अगर उन्होंने राजनैतिक पार्टी कार्ड नहीं खरीदे, तो वे उनका बलात्कार करेंगे। भीड़ ने उनसे झूठ बोला कि तुम्हारे बेथेल परिवार के कुछ सदस्यों ने भी पार्टी कार्ड खरीदे हैं। इस पर बहनों का जवाब था: “हम केवल यहोवा परमेश्‍वर की उपासना करते हैं। अगर शाखा दफ्तर के भाइयों ने कार्ड खरीदे भी हैं, तो उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम समझौता नहीं करेंगे, फिर चाहे आप हमारी जान ही क्यों न ले लें!” ये दोनों बहनें हिम्मत के साथ अपने विश्‍वास पर डटी रहीं। इसलिए आखिरकार उन्हें छोड़ दिया गया।

6, 7. यहोवा अपने सेवकों को ज़ुल्म सहने की ताकत कैसे देता है?

6 प्रेषित पौलुस ने कहा कि थिस्सलुनीके के मसीहियों ने “बहुत क्लेश सहते हुए” सच्चाई कबूल की, लेकिन ऐसा उन्होंने “पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली खुशी के साथ” किया। (1 थिस्स. 1:6) सच, गुज़रे सालों में और आज भी जिन मसीहियों ने ज़ुल्मों के आगे घुटने नहीं टेके, वे कहते हैं कि जब वे परीक्षा की सबसे मुश्‍किल घड़ी में थे, तब उन्होंने मन की शांति महसूस की जो पवित्र शक्‍ति का एक फल है। (गला. 5:22) उस शांति ने उनके दिलो-दिमाग की हिफाज़त की और वे सही तरह से सोच पाए। जी हाँ, यहोवा अपनी सक्रिय शक्‍ति की मदद से अपने सेवकों को ताकत देता है ताकि वे परीक्षाओं का सामना कर पाएँ और मुसीबत आने पर बुद्धिमानी से काम लें। *

7 जब बेरहमी से ज़ुल्म ढाए जाने पर भी परमेश्‍वर के लोग खराई बनाए रखते हैं, तो देखनेवाले दाँतों तले उँगली दबा लेते हैं। उन्हें लगता है कि मानो वह कोई और ही ताकत है, जिसके बूते वे सब सह पाते हैं। और यह सच भी है। प्रेषित पौलुस हमें यकीन दिलाते हुए कहता है: “अगर मसीह के नाम की खातिर तुम्हें बदनाम किया जाता है, तो तुम सुखी हो, क्योंकि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति और इसकी महिमा तुम्हारे ऊपर रहती है।” (1 पत. 4:14) जब परमेश्‍वर के धर्मी स्तरों के मुताबिक जीने की खातिर हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो इससे ज़ाहिर होता है कि हम पर परमेश्‍वर की मंज़ूरी यानी आशीष है। (मत्ती 5:10-12; यूह. 15:20) और इस बात से हमें बड़ी खुशी मिलती है।

साथियों के दबाव का विरोध करने के लिए ताकत

8. (क) किस वजह से यहोशू और कालेब साथियों के दबाव का सामना कर सके? (ख) हम यहोशू और कालेब की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

8 मसीहियों पर एक और तरीके से विरोध आ सकता है और वह है, साथियों का दबाव। यहोवा की पवित्र शक्‍ति दुनिया की सबसे ताकतवर शक्‍ति है, जिसकी बदौलत हम ऐसे लोगों का विरोध कर पाते हैं जो हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, हमारे बारे में झूठ फैलाते या हम पर अपने स्तरों के मुताबिक जीने का दबाव डालते हैं। मसलन, यहोशू और कालेब पर गौर कीजिए। जब 12 जासूसों को कनान देश की जासूसी करने के लिए भेजा गया, तब वे बाकी जासूसों के दबाव में क्यों नहीं आए? क्योंकि पवित्र शक्‍ति ने उन्हें एक अलग “शक्‍ति” (NW) या अलग सोच दी थी।गिनती 13:30; 14:6-10, 24 पढ़िए।

9. मसीही क्यों लोगों से अलग नज़र आने के लिए तैयार रहते हैं?

9 पहली सदी में ज़्यादातर लोग उन गुरुओं का आदर करते थे, जो सच्चे धर्म के शिक्षक होने का दम भरते थे। मगर पवित्र शक्‍ति ने यीशु के चेलों को इन धर्म गुरुओं के बजाय परमेश्‍वर की आज्ञा मानने की ताकत दी। (प्रेषि. 4:21, 31; 5:29, 32) आज भी ज़्यादातर लोग दूसरों की हाँ-में-हाँ मिलाते हैं क्योंकि वे आपस में किसी तरह का टकराव या झगड़ा नहीं चाहते। लेकिन जहाँ तक सच्चे मसीहियों की बात है, जब वे सीख लेते हैं कि क्या सही है तो वे हर हाल में उस पर डटे रहते हैं। वे परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति के शुक्रगुज़ार हैं जो उन्हें दुनिया से अलग नज़र आने की हिम्मत देती है। (2 तीमु. 1:7) चलिए साथियों के दबाव के एक ऐसे मामले पर गौर करें, जहाँ हमें सावधान रहना चाहिए।

10. कुछ मसीही किस कश-मकश में पड़ सकते हैं?

10 जब कुछ जवानों को पता चलता है कि उनके किसी दोस्त ने बाइबल के खिलाफ कोई काम किया है, तो वे कश-मकश में पड़ जाते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। वे सोच सकते हैं कि इस बारे में प्राचीनों को बताना, अपने दोस्त को दगा देना होगा, इसलिए वे चुप्पी साध लेते हैं। हो सकता है, गुनाह करनेवाला अपने साथी पर दबाव डाले कि वह उसके पाप के बारे में किसी को न बताए। ऐसी कश-मकश का सामना सिर्फ जवान ही नहीं, बड़े भी करते हैं। उन्हें भी अपने किसी दोस्त या परिवार के सदस्य की गलती प्राचीनों को बताने में झिझक हो सकती है। पर सच्चे मसीही ऐसे दबाव का सामना कैसे कर सकते हैं?

11, 12. जब मंडली का कोई भाई-बहन हमसे मिन्‍नत करता है कि हम उसकी गलती प्राचीनों को न बताएँ तो इस हालात में हमारे लिए सबसे बढ़िया कदम क्या होगा और क्यों?

11 कल्पना कीजिए कि एरिक नाम के एक जवान भाई को पता चलता है कि मंडली के उसके एक दोस्त गौरव को अश्‍लील तसवीरें देखने की बुरी आदत पड़ गयी है। एरिक अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए गौरव से कहता है कि वह बहुत गलत कर रहा है। पर गौरव उसकी बात को अनसुना कर देता है। जब एरिक कहता है कि तुम जाकर इस बारे में प्राचीनों को बताओ, तो गौरव अपनी दोस्ती का वास्ता देकर कहता है कि अगर तुम मेरे सच्चे दोस्त हो तो तुम भी किसी को नहीं बताओगे। क्या एरिक को अपनी दोस्ती खोने का डर होना चाहिए? शायद एरिक के मन में यह खयाल भी आए कि अगर प्राचीनों के सामने गौरव ने साफ झूठ बोल दिया तब प्राचीन किसका यकीन करेंगे। लेकिन एरिक यह भी जानता है कि चुप रहने से भी बात नहीं बनेगी। गौरव का यहोवा के साथ रिश्‍ता पूरी तरह टूट सकता है। इस मामले में एरिक को याद रखना चाहिए कि “मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है, परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह ऊंचे स्थान पर चढ़ाया जाता है।” (नीति. 29:25) तो एरिक अब क्या कर सकता है? वह दोबारा गौरव को प्यार से समझा सकता है और उसे उसकी गलती का एहसास करा सकता है। बेशक इसके लिए हिम्मत की ज़रूरत होगी। और शायद इस बार गौरव एरिक के साथ खुलकर बात करने के लिए राज़ी हो जाए। ऐसे समय पर एरिक को गौरव से कहना चाहिए कि अगर वह एक तय समय में प्राचीनों से बात नहीं करेगा तो वह खुद जाकर उन्हें बता देगा।—लैव्य. 5:1.

12 अगर आप कभी ऐसे हालात का सामना करते हैं, तो शुरू में हो सकता है कि आपका दोस्त आपकी मदद की कदर न करे। लेकिन समय के गुज़रते वह समझ जाएगा कि आपने उसकी भलाई के लिए ही ऐसा कदम उठाया था। अगर गलती करनेवाला मदद कबूल करता है तो वह आपकी वफादारी और हिम्मत के लिए हमेशा एहसानमंद रहेगा। दूसरी तरफ, अगर वह आपसे नाराज़ हो जाता है तो क्या आप कह सकेंगे कि वह वाकई आपका अच्छा दोस्त है? क्या आप ऐसे दोस्त चाहते हैं? हमेशा अपने सबसे अच्छे दोस्त यहोवा को खुश करना ही बुद्धिमानी होगी। जब हम यहोवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं तो उससे प्यार करनेवाले लोग हमारी इस वफादारी की कदर करते हैं और वही सच्चे दोस्त होते हैं। हमें किसी भी तरीके से मसीही मंडली में शैतान को आने का मौका नहीं देना चाहिए। अगर हम ऐसा मौका देते हैं तो हम यहोवा की पवित्र शक्‍ति को दुख पहुँचाते हैं। लेकिन अगर हम मसीही मंडली को पवित्र रखने के लिए कदम उठाते हैं तो हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक चल रहे होते हैं।—इफि. 4:27, 30.

हर विपत्ति का सामना करने के लिए ताकत

13. आज यहोवा के लोग किन विपत्तियों का सामना करते हैं और इसकी वजह क्या है?

13 हम पर विपत्ति किसी भी रूप में आ सकती है जैसे कुदरती आफत, आर्थिक तंगी, अज़ीज़ की मौत, खराब सेहत, नौकरी चले जाने या किसी और रूप में। हम ‘संकटों से भरे वक्‍त’ में जी रहे हैं, इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि आज नहीं तो कल हमें किसी-न-किसी तरह की विपत्ति का सामना करना ही पड़ेगा। (2 तीमु. 3:1) जब हम पर कोई विपत्ति आती है तो हमें घबराना नहीं चाहिए। पवित्र शक्‍ति हमें हर तरह की विपत्ति का सामना करने की ताकत दे सकती है।

14. अय्यूब को किस बात से अपनी विपत्ति सहने में मदद मिली?

14 अय्यूब पर एक-के-बाद-एक कई विपत्तियाँ आयीं। उसे अपनी धन-दौलत, बच्चों, दोस्तों और अपनी सेहत से हाथ धोना पड़ा, यहाँ तक कि उसकी पत्नी का विश्‍वास भी यहोवा पर से उठ गया। (अय्यू. 1:13-19; 2:7-9) लेकिन अय्यूब को दिलासा देनेवाला एक सच्चा दोस्त एलीहू मिला। एलीहू और यहोवा ने जो बात अय्यूब से कही उसका सार यह है: “चुपचाप खड़ा रह, और ईश्‍वर के आश्‍चर्यकर्मों का विचार कर।” (अय्यू. 37:14) विपत्ति सहने में अय्यूब को किस बात से मदद मिली? और आनेवाली विपत्तियों को सहने में हमें किस बात से मदद मिलेगी? यहोवा की पवित्र शक्‍ति के अलग-अलग गुणों और उसकी ताकत को याद करने और मनन करने से हमें मदद मिल सकती है। (अय्यू. 38:1-41; 42:1, 2) हम अपनी ज़िंदगी के उन पलों को याद कर सकते हैं, जब यहोवा ने हमें इस बात का सबूत दिया कि वह हममें व्यक्‍तिगत तौर पर दिलचस्पी लेता है। और आज भी वह ऐसा ही करता है।

15. पौलुस को अपनी परीक्षाएँ सहने के लिए ताकत कैसे मिली?

15 अपने विश्‍वास की खातिर प्रेषित पौलुस को बहुत-से जानलेवा खतरों का सामना करना पड़ा। (2 कुरिं. 11:23-28) परीक्षा की उन घड़ियों में उसने खुद को कैसे सँभाला? प्रार्थना के ज़रिए यहोवा पर पूरी तरह निर्भर रहकर। शहीद होने से पहले, जब वह परीक्षाओं से गुज़र रहा था तब उसने लिखा: “प्रभु मेरे पास खड़ा रहा और उसने मुझमें शक्‍ति भर दी ताकि मेरे ज़रिए अच्छी तरह प्रचार पूरा हो और सब जातियों के लोग सुन सकें। मुझे शेर के मुँह से छुड़ाया गया।” (2 तीमु. 4:17) इसलिए खुद के अनुभव से पौलुस संगी विश्‍वासियों को यह भरोसा दिला पाया कि उन्हें “किसी भी बात को लेकर चिंता” करने की ज़रूरत नहीं।फिलिप्पियों 4:6, 7, 13 पढ़िए।

16, 17. एक उदाहरण दीजिए कि कैसे यहोवा आज विपत्ति से गुज़र रहे अपने सेवकों की मदद करता है?

16 रोक्साना नाम की पायनियर बहन ने अपने जीवन में देखा कि यहोवा अपने लोगों की ज़रूरतें पूरी करता है। एक बार जब उसने अपने मालिक से अधिवेशन में जाने के लिए छुट्टी माँगी तो मालिक ने भड़ककर कहा कि अगर उसने छुट्टी ली तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। लेकिन रोक्साना फिर भी गयी और प्रार्थना करती रही कि उसकी नौकरी हाथ से न जाए। प्रार्थना करने के बाद उसने सुकून महसूस किया। लेकिन जैसा कि मालिक ने कहा था उसने वही किया। जब वह सोमवार को काम पर पहुँची तो मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया। वह बहुत घबरा गयी। उसे उस नौकरी की सख्त ज़रूरत थी। हालाँकि उसकी तनख्वाह ज़्यादा नहीं थी, मगर उससे उसके परिवार का गुज़ारा चलता था। उसने फिर यहोवा से प्रार्थना की और सोचा कि यहोवा ने अधिवेशन के ज़रिए उसकी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी की हैं तो वह उसकी शारीरिक ज़रूरतों को भी नज़रअंदाज़ नहीं करेगा। घर लौटते वक्‍त रोक्साना ने रास्ते में यह इश्‍तहार देखा कि कारखाने में सिलाई मशीन चलानेवाले अनुभवी “कर्मचारियों की ज़रूरत है।” उसने अरज़ी दे दी। मैनेजर को एहसास हुआ कि रोक्साना को उस काम का अनुभव नहीं है, मगर फिर भी उसने उसे नौकरी पर रख लिया। यहाँ उसकी तनख्वाह तकरीबन दुगुनी थी। रोक्साना ने महसूस किया कि उसकी प्रार्थना का जवाब मिल गया है। उसे सबसे बड़ी आशीष तो यह मिली कि वह अपने साथ काम करनेवालों को राज की खुशखबरी सुना सकी। उनमें से पाँच लोगों ने सच्चाई अपनाकर बपतिस्मा ले लिया, जिनमें से एक उसका मैनेजर था।

17 कभी-कभी हमें लग सकता है कि हमारी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं मिल रहा है। मगर हो सकता है, उसके पीछे कोई वाजिब कारण हो। हम शायद अपनी प्रार्थनाओं का जवाब तुरंत और मन मुताबिक चाहते हों। मगर यहोवा हमारी ज़रूरतें हमसे बेहतर जानता है, जिसके बारे में हमें शायद आगे चलकर मालूम हो। लेकिन आप एक बात का भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा अपने वफादार लोगों को कभी नहीं छोड़ता।—इब्रा. 6:10.

परीक्षाओं और प्रलोभनों का सामना करने के लिए ताकत

18, 19. (क) हम क्यों परीक्षाओं और प्रलोभनों के आने की उम्मीद कर सकते हैं? (ख) आप परीक्षाओं का सामना करने में कैसे कामयाब हो सकते हैं?

18 जब यहोवा के लोगों पर प्रलोभन, निराशा, अत्याचार और साथियों का दबाव आता है तो उन्हें हैरानी नहीं होती। आज दुनिया हमारी दुश्‍मन है। (यूह. 15:17-19) फिर भी पवित्र शक्‍ति हमें परमेश्‍वर की सेवा में आनेवाली किसी भी चुनौती का सामना करने की ताकत दे सकती है। यहोवा हम पर उस हद तक परीक्षा नहीं आने देगा कि हम सह न सकें। (1 कुरिं. 10:13) वह न तो हमें कभी छोड़ेगा और न ही कभी त्यागेगा। (इब्रा. 13:5) अगर हम उसके वचन पर चलेंगे तो हमारी हिफाज़त होगी और हमें मज़बूती मिलेगी। इससे भी बढ़कर, जब हमें मदद की सख्त ज़रूरत होगी तब परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति हमारे संगी विश्‍वासियों को हमारी मदद करने के लिए उभारेगी।

19 आइए हम सब प्रार्थना और उसके वचन के ज़रिए उसकी पवित्र शक्‍ति पाने की कोशिश करते रहें। ऐसा हो कि ‘परमेश्‍वर के उस बल से जो महिमा से भरपूर है, हमें वह सारी शक्‍ति मिले जिसकी हमें ज़रूरत है ताकि हम पूरी तरह धीरज धर सकें और खुशी के साथ सहनशीलता दिखाएँ।’—कुलु. 1:11.

[फुटनोट]

आप क्या जवाब देंगे?

• आप ज़ुल्मों के दौर में कैसे डटे रह सकते हैं?

• अगर कोई कहता है कि आप उसकी गलतियों का खुलासा न करें तो आपको क्या करना चाहिए?

• अगर आप पर कोई विपत्ति टूट पड़ती है तो आप क्या भरोसा रख सकते हैं?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 28 पर तसवीर]

हम यहोशू और कालेब से क्या सीखते हैं?

[पेज 29 पर तसवीर]

अगर आपका दोस्त कुछ गलत काम करता है तो आप उसकी मदद कैसे कर सकते हैं?