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क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ पढ़ने का आनंद लिया है? देखिए कि क्या आप नीचे दिए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:

• ऐसे तीन तरीके क्या हैं, जो हमें बेईमानी के रास्ते पर चलने से रोक सकते हैं?

वे हैं: (1) सही मायने में परमेश्‍वर का भय होना। (1 पत. 3:12) (2) बाइबल से तालीम पाया हुआ विवेक पैदा करना। और (3) जीवन में जो है, उसी में संतुष्ट रहने की कोशिश करना।—4/15, पेज 6-7.

• हम कैसे कह सकते हैं कि गंभीरता के साथ परमेश्‍वर की सेवा करने का यह मतलब नहीं कि हम हरदम गंभीर-सा चेहरा बनाए रखें, या लोगों के साथ हँसना-बोलना छोड़ दें?

हम यीशु की मिसाल पर गौर कर सकते हैं। उसने दूसरों के साथ मिलकर खाना खाने का आनंद उठाया। हम जानते हैं कि वह हद-से-ज़्यादा गंभीर या सख्त नहीं था। दूसरे लोग, यहाँ तक बच्चे भी उसके पास आते थे और उन्हें उसके साथ अच्छा लगता।—4/15, पेज 10.

रोमियों के 11वें अध्याय में बताया गया जैतून का पेड़ किसे दर्शाता था?

जैतून का पेड़, अब्राहम के वंश के दूसरे भाग यानी आध्यात्मिक इसराएल को दर्शाता है। यहोवा इस लाक्षणिक जैतून के पेड़ की जड़ की तरह है और यीशु उसके तने की तरह। जब ज़्यादातर पैदाइशी यहूदियों ने यीशु को ठुकरा दिया, तब यीशु में विश्‍वास दिखानेवाले गैर-यहूदियों की कलमें उनमें लगायी गयीं और इस तरह अब्राहम के वंश के दूसरे भाग की गिनती पूरी की गयी।—5/15, पेज 22-25.

• अगर सिद्ध इंसान यीशु के बच्चे होते तो क्या वे भी फिरौती का भाग होते?

नहीं। हालाँकि यीशु लाखों-करोड़ों सिद्ध संतानें पैदा करने के काबिल था, लेकिन उसकी अजन्मी संतानें फिरौती का भाग नहीं बनतीं। सिर्फ यीशु का सिद्ध जीवन, आदम के सिद्ध जीवन का बराबर दाम था। (1 तीमु. 2:6)—6/15, पेज 13.

• मसीही कैसे दिखा सकते हैं कि वे झूठे शिक्षकों के बारे में प्रेषितों 20:29, 30 में दी गयी चेतावनी को दिल में उतार रहे हैं?

वे न तो झूठे शिक्षकों को अपने घर में बुलाते हैं और ना ही उन्हें दुआ-सलाम करते हैं। (रोमि. 16:17; 2 यूह. 9-11) मसीही उनके ऐसे साहित्य पढ़ने, टीवी पर उनके कार्यक्रम देखने और उनकी बेव साइटों से दूर रहते हैं जिनमें उनकी झूठी शिक्षाएँ होती हैं।—7/15, पेज 15-16.