‘मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ’
‘मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ’
‘बहुत लोग पूछ-पाछ और ढ़ूंढ़-ढांढ़ करेंगे और सच्चा ज्ञान बढ़ जाएगा।’—दानि. 12:4.
आप क्या जवाब देंगे?
हमारे ज़माने में ‘सच्चे ज्ञान’ पर से कैसे परदा उठा है?
सच्चाई कबूल करनेवालों की गिनती कैसे “बहुत” हो गयी है?
किन तरीकों से सच्चा ज्ञान “बढ़” गया है?
1, 2. (क) हम कैसे जानते हैं कि यीशु आज अपने चेलों के साथ है और भविष्य में भी अपनी प्रजा के साथ रहेगा? (ख) दानिय्येल 12:4 के मुताबिक शास्त्र का गहराई से अध्ययन करने का क्या नतीजा होगा?
सोचिए कि आप फिरदौस में हैं। सुबह जब आपकी आँख खुलती है, आप एकदम तरो-ताज़ा महसूस करते हैं। यह सोचकर आप उमंग से भर जाते हैं कि आज के दिन मैं यह करूँगा, वह करूँगा। आपके शरीर में कहीं कोई दर्द नहीं है। जो बीमारियाँ आपको परेशान करती थीं, वे सब-की-सब उड़न छू हो गयी हैं। आपकी देखने, सुनने, चखने, सूँघने और छूने की शक्ति बिलकुल ठीक से काम कर रही है। आपमें कमाल का दमखम है, हर काम करने में आपको बड़ा मज़ा आता है। आपके बहुत सारे दोस्त हैं। कोई भी चिंता आपको नहीं सताती। जी हाँ, ऐसा खुशनुमा वक्त आपको परमेश्वर के राज में देखने को मिलेगा, उस राज में जिसका राजा, मसीह यीशु है। वह अपनी प्रजा को बेशुमार आशीषें देगा और उन्हें यहोवा के बारे में सिखाएगा।
2 उस वक्त पूरी दुनिया में शिक्षा देने का जो काम चलाया जाएगा, उसमें यहोवा अपने वफादार सेवकों के साथ होगा। यहोवा और उसका बेटा सदियों से अपने वफादार जनों के संग रहे हैं। स्वर्ग लौटने से पहले यीशु ने अपने चेलों को भरोसा दिलाया था कि वह हमेशा उनके साथ रहेगा। (मत्ती 28:19, 20 पढ़िए।) यीशु के उस वादे पर अपना विश्वास मज़बूत करने के लिए आइए हम एक भविष्यवाणी पर चर्चा करें, जो दानिय्येल ने आज से करीब 2,500 साल पहले बैबिलोन में दर्ज़ की थी। दानिय्येल ने “अन्त समय” यानी आज जिस समय में हम जी रहे हैं, उस बारे में लिखा, ‘बहुत लोग पूछ-पाछ और ढ़ूंढ़-ढांढ़ करेंगे और सच्चा ज्ञान बढ़ जाएगा।’ (दानि. 12:4) इस तरह ढूँढ़-ढाँढ़ करने से क्या ही बेहतरीन आशीषें मिलेंगी! शास्त्र का गहराई से अध्ययन करनेवालों को परमेश्वर के वचन के बारे में सच्चा ज्ञान या सही समझ हासिल होगी। भविष्यवाणी में यह भी बताया गया है कि ‘सच्चा ज्ञान बढ़ जाएगा।’ यानी सच्चे ज्ञान की तलाश करनेवाले उसे अपनाएँगे और दूसरों को इसके बारे में सिखाएँगे। इसके अलावा, दुनिया के कोने-कोने में रहनेवालों तक यह ज्ञान पहुँचाया जाएगा। अब जब हम देखेंगे कि यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई है, तो हम समझ पाएँगे कि यीशु आज अपने चेलों के साथ है और यहोवा अपने वादों को हर हाल में पूरा करने की काबिलीयत रखता है।
‘सच्चे ज्ञान’ पर से परदा उठा
3. प्रेषितों की मौत के बाद ‘सच्चे ज्ञान’ का क्या हुआ?
3 प्रेषितों की मौत के बाद मसीही धर्म में झूठे धर्मों की मिलावट होने लगी, ठीक जैसे भविष्यवाणी में बताया गया था और यह आग की तरह फैल गयी। (प्रेषि. 20:28-30; 2 थिस्स. 2:1-3) उसके बाद कई सदियों तक, ‘सच्चा ज्ञान’ छिपा रहा। ऐसा नहीं कि यह ज्ञान सिर्फ उन लोगों से छिपा रहा जिन्हें बाइबल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, बल्कि उनसे भी जो खुद को मसीही कहते थे। ईसाईजगत के पादरी शास्त्र पर विश्वास करने का दम भर रहे थे मगर असल में वे झूठी शिक्षाएँ फैला रहे थे। वे “दुष्ट स्वर्गदूतों की शिक्षाओं” को बढ़ावा दे रहे थे, जिनसे परमेश्वर का घोर अपमान हो रहा था। (1 तीमु. 4:1) इस वजह से ज़्यादातर लोग परमेश्वर के बारे में सच्चाई नहीं जानते थे। उलटा, उन्हें कुछ इस तरह की शिक्षाएँ दी जा रही थीं: परमेश्वर त्रिएक है, आत्मा अमर है और कुछ लोगों की आत्माओं को नरक की आग में हमेशा के लिए तड़पाया जाता है।
4. सन् 1870 के दशक में मसीहियों का एक समूह किस तरह ‘सच्चा ज्ञान’ ढूँढ़ने लगा?
4 लेकिन इन “आखिरी दिनों” के शुरू होने के करीब चालीस साल पहले यानी सन् 1870 के दशक में, अमरीका के पेन्सिलवेनिया राज्य में एक छोटा-सा समूह बाइबल का अध्ययन करने और ‘सच्चा ज्ञान’ ढूँढ़ने के लिए इकट्ठा हुआ। (2 तीमु. 3:1) यह समूह नेकदिल मसीहियों से मिलकर बना था जो खुद को ‘बाइबल विद्यार्थी’ कहते थे। वे उन “बुद्धिमानों और ज्ञानियों” की तरह नहीं थे, जिनके बारे में यीशु ने कहा था कि परमेश्वर उनसे ज्ञान छिपाए रखेगा। (मत्ती 11:25) वे नम्र लोग थे जो सच्चे दिल से परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहते थे। जब वे इकट्ठा होते थे, तो शास्त्र के वचनों को पढ़ते, उन पर चर्चा और मनन करते और मदद के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते थे। वे किसी आयत को समझने के लिए बाइबल की दूसरी आयतें देखते थे, साथ ही उन लोगों के लेख भी पढ़ते थे जो उनकी तरह सच्चाई की तलाश कर रहे थे। धीरे-धीरे इन बाइबल विद्यार्थियों को सच्चाई साफ नज़र आने लगी, जो सदियों से गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गयी थी।
5. द ओल्ड थियॉलजी नाम के ट्रैक्ट छापने का क्या मकसद था?
5 बाइबल विद्यार्थी जो बातें सीख रहे थे उससे वे बहुत खुश हुए, लेकिन वे घमंड से फूल नहीं उठे। उन्होंने यह शेखी नहीं बघारी कि उन्होंने कुछ नया ढूँढ़ निकाला है, बल्कि कबूल किया कि ये सच्चाइयाँ हमेशा से बाइबल में थीं। (1 कुरिं. 8:1) उन्होंने द ओल्ड थियॉलजी नाम के ट्रैक्ट की कई श्रृंखलाएँ छापीं। इसका मकसद था पढ़नेवालों को बाइबल में दी सच्चाइयों से वाकिफ कराना। पहले कुछ ट्रैक्ट की मदद से लोग बाइबल का अध्ययन कर सकते थे ताकि वे “इंसान की बनायी सारी झूठी परंपराओं” को ठुकरा दें और दोबारा उन सच्ची शिक्षाओं को मानने लगें जो यीशु और प्रेषितों ने सिखायी थीं।—द ओल्ड थियॉलजी, अंक 1, अप्रैल 1889, पेज 32.
6, 7. (क) सन् 1870 के दशक से हमें किन सच्चाइयों की समझ मिली है? (ख) आपको खासकर किस सच्चाई के बारे में जानकर खुशी हुई?
6 सन् 1870 के दशक में जो छोटी-सी शुरूआत हुई थी, तब से लेकर आज तक कितनी बेमिसाल सच्चाइयों से परदा उठा है! * ये सच्चाइयाँ न तो उबाऊ हैं, न ही ऐसी जिन्हें सिर्फ धर्म के विद्वान समझ सकते हैं और उन पर बहस कर सकते हैं। ये ऐसी सच्चाइयाँ हैं जो हमें रोमांचित कर देती हैं, हमें झूठी शिक्षाओं से आज़ाद करती हैं, हमारी ज़िंदगी सँवार देती हैं और हमारे दिल में खुशी और उम्मीद भर देती हैं। इन सच्चाइयों की बदौलत हम यहोवा, उसकी शख्सियत और उसके मकसदों को जान पाते हैं। ये हमें बताती हैं कि यीशु कौन है, क्यों उसे धरती पर आकर मरना पड़ा और अब वह क्या कर रहा है। ये अनमोल सच्चाइयाँ बताती हैं कि परमेश्वर ने बुराई क्यों रहने दी है, हम क्यों मरते हैं, हमें किस तरह प्रार्थना करनी चाहिए और हम सच्ची खुशी कैसे पा सकते हैं।
7 आज हम उन भविष्यवाणियों का मतलब समझ पाए हैं जो लंबे अरसे तक “गुप्त” रहीं, मगर अंत के इस समय में पूरी हो रही हैं। (दानि. 12:9, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) इनमें से कई भविष्यवाणियाँ खुशखबरी की किताबों और प्रकाशितवाक्य की किताब में दी गयी हैं। यहोवा ने उन घटनाओं को समझने में हमारी मदद की है, जिन्हें हम अपनी आँखों से नहीं देख सकते। जैसे, यीशु को राजा बनाया जाना, स्वर्ग में युद्ध होना और शैतान का धरती पर फेंक दिया जाना। (प्रका. 12:7-12) और जिन घटनाओं को होते हम देख सकते हैं उनकी समझ हासिल करने में भी परमेश्वर ने हमारी मदद की है। जैसे युद्ध, भूकंप, अकाल और महामारी क्यों हो रही है और क्यों लोग बुरे काम कर रहे हैं जिससे ‘संकटों से भरा ऐसा वक्त आया है जिसका सामना करना मुश्किल हो रहा है।’—2 तीमु. 3:1-5; लूका 21:10, 11.
8. हम किसकी बदौलत सच्चाई को देख-सुन पाए हैं?
8 हम यीशु के इन शब्दों से पूरी तरह सहमत हैं जो उसने अपने चेलों से कहे थे, “सुखी हैं वे जिनकी आँखें वह सब देखती हैं जो तुम देख रहे हो। क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुत-से भविष्यवक्ताओं और राजाओं की तमन्ना थी कि वह सब देखें जो तुम देख रहे हो मगर न देख सके और वे बातें सुनें जो तुम सुन रहे हो मगर न सुन सके।” (लूका 10:23, 24) यहोवा परमेश्वर की बदौलत ही हम सच्चाई को देख-सुन पा रहे हैं। और हम इस बात के लिए भी कितने एहसानमंद हैं कि उसने एक “मददगार” यानी अपनी पवित्र शक्ति भेजी है ताकि वह “सच्चाई की पूरी समझ पाने में” हमारी मदद करे। (यूहन्ना 16:7, 13 पढ़िए।) आइए हम हमेशा ‘सच्चे ज्ञान’ को अनमोल समझें और दिल खोलकर दूसरों में यह ज्ञान बाटें।
‘बहुत-से लोग सच्चा ज्ञान’ कबूल करेंगे
9. इस पत्रिका के अप्रैल 1881 के अंक में क्या गुज़ारिश की गयी थी?
9 वॉच टावर पत्रिका के पहले अंक की छपाई के करीब दो साल बाद, अप्रैल 1881 में उस पत्रिका में एक लेख आया जिसका शीर्षक था, “ज़रूरत है 1,000 प्रचारकों की।” उस लेख में कहा गया था: “जिन लोगों के हालात उन्हें इजाज़त देते हैं कि वे अपना आधा या उससे भी ज़्यादा समय प्रभु के काम में लगा सकें, उनको हम यह सुझाव देना चाहेंगे . . . कि आप अपनी काबिलीयत को देखते हुए छोटे-बड़े शहरों में कोलपोर्टर या प्रचारक बनकर जाएँ। और हर जगह नेकदिल मसीहियों को ढूँढ़ने की कोशिश करें, इनमें कई ऐसे हैं जो परमेश्वर की सेवा के लिए जोश तो रखते हैं मगर सही ज्ञान के मुताबिक नहीं। ऐसे लोगों को हमारे पिता की बेशुमार कृपा के बारे में बताइए और उसके वचन में छिपा खज़ाना खोलकर दिखाइए।”
10. पूरे समय के प्रचारकों के लिए जो गुज़ारिश की गयी थी, उसे पढ़कर कई लोगों ने क्या करना चाहा?
10 उस गुज़ारिश से पता चलता है कि बाइबल विद्यार्थियों को एहसास था कि सच्चे मसीहियों का सबसे अहम काम है खुशखबरी का प्रचार करना। उस वक्त सिर्फ सौ से ऊपर लोग बाइबल विद्यार्थियों की सभाओं में आते थे, इसलिए इस गुज़ारिश को कबूल करने के लिए उतने लोग नहीं थे। लेकिन कई लोगों को ट्रैक्ट या पत्रिका पढ़कर लगा कि यही सच्चाई है और वे इस बारे में दूसरों को भी बताना चाहते थे। मिसाल के लिए, 1882 में इंग्लैंड के लंदन शहर में एक आदमी ने वॉच टावर पत्रिका का एक अंक और एक पुस्तिका पढ़ी जिसे बाइबल विद्यार्थियों ने छापा था। उसने लिखा: “कृपया मुझे बताइए कि मैं कैसे और क्या प्रचार करूँ ताकि मैं उस पवित्र काम में हाथ बँटा सकूँ, जो परमेश्वर चाहता है कि किया जाए।”
11, 12. (क) कोलपोर्टरों की तरह आज हमारा क्या मकसद है? (ख) कोलपोर्टरों ने किस तरह नयी मंडलियाँ शुरू कीं?
11 सन् 1885 तक करीब 300 बाइबल विद्यार्थी कोलपोर्टर के नाते पूरे समय की सेवा करने लगे थे। इन प्रचारकों का वही मकसद था जो आज हमारा है, लोगों को यीशु मसीह का चेला बनना सिखाना। लेकिन उस वक्त उनका तरीका हमसे अलग था। आज हम एक समय पर एक व्यक्ति के साथ बाइबल अध्ययन करते हैं। फिर हम उसे संगति करने के लिए मंडली में आने का बुलावा देते हैं। लेकिन बीते ज़माने में कोलपोर्टर पहले लोगों को किताबें देते थे, फिर दिलचस्पी दिखानेवालों को एक समूह में इकट्ठा करके उनके साथ बाइबल का अध्ययन करते थे। इसी समूह से मंडली बनती थी, जिसे “क्लास” कहा जाता था।
12 उदाहरण के लिए, सन् 1907 में कोलपोर्टरों का एक समूह किसी शहर में यह पता लगाने घर-घर गया कि किन लोगों के पास पहले से मिलेनियल डॉन (इन किताबों को स्टडीज़ इन द स्क्रिप्चर्स भी कहा जाता है) की कॉपियाँ हैं। इस बारे में वॉच टावर कहती है: “इन [यानी दिलचस्पी दिखानेवाले] लोगों को किसी एक के घर में इकट्ठा किया जाता है और एक छोटी-सी सभा रखी जाती है। रविवार के दिन एक कोलपोर्टर उनके साथ ‘युगों के लिए ईश्वरीय योजना’ पर बात करता और अगले रविवार सभा में आए लोगों को नियमित तौर पर सभाएँ रखने का बढ़ावा देता।” फिर सन् 1911 में भाइयों ने इस तरीके में थोड़ी फेरबदल की। अट्ठावन भाइयों ने पूरे अमरीका और कनाडा में जन-भाषण दिए। इन भाइयों ने भाषण सुनने आए दिलचस्पी दिखानेवालों के नाम-पते लिखे और उन्हें घरों में इकट्ठा होने के लिए संगठित किया। इस तरह उन्होंने नयी मंडलियाँ शुरू कीं। सन् 1914 के आते-आते दुनिया-भर में बाइबल विद्यार्थियों की 1,200 मंडलियाँ बन गयी थीं।
13. प्रचार काम के बारे में क्या बात आपको हैरान कर देती है?
13 आज पूरी दुनिया में लगभग 1,09,400 मंडलियाँ हैं और करीब 8,95,800 भाई-बहन पायनियर सेवा कर रहे हैं। अब तक करीब 80 लाख लोगों ने ‘सच्चे ज्ञान’ को कबूल किया है और वे उसके मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीने की कोशिश करते हैं। (यशायाह 60:22 पढ़िए।) * यह बढ़ोतरी वाकई हैरान कर देनेवाली है, खासकर जब हम यीशु की इस भविष्यवाणी पर ध्यान देते हैं कि उसके चेले “सब लोगों की नफरत के शिकार” बनेंगे। उसने यह भी कहा कि उन्हें सताया जाएगा, जेलखानों में डाला जाएगा, यहाँ तक कि मौत के घाट उतारा जाएगा। (लूका 21:12-17) शैतान, उसके दुष्ट स्वर्गदूतों और धरती पर कई इंसानों ने प्रचार काम को रोकने के लिए क्या कुछ नहीं किया। मगर यहोवा के लोग इस काम में आगे बढ़ते ही जा रहे हैं और शानदार कामयाबी हासिल कर रहे हैं। वे “पूरी धरती पर जहाँ-जहाँ लोग बसे हुए हैं” प्रचार कर रहे हैं, चाहे बर्फीली जगह हों या झुलसानेवाले गरम इलाके, पहाड़ी क्षेत्र हों या रेगिस्तानी इलाके, घनी आबादीवाले शहर हों या दूर-दराज़ इलाकों में बसे गाँव-कसबे। (मत्ती 24:14, फुटनोट) यह सबकुछ परमेश्वर की मदद से ही मुमकिन हो पाया है।
‘सच्चा ज्ञान बढ़’ गया है
14. किस तरह किताबों-पत्रिकाओं के ज़रिए ‘सच्चा ज्ञान’ बढ़ा है?
14 आज ‘सच्चा ज्ञान’ बहुत बढ़ा है और वह इसलिए कि बहुत-से लोग खुशखबरी का ऐलान कर रहे हैं। यह ज्ञान किताबों-पत्रिकाओं के ज़रिए भी बढ़ा है। जुलाई 1879 में बाइबल विद्यार्थियों ने इस पत्रिका का पहला अंक निकाला, जिसे ज़ायन्स वॉच टावर एण्ड हेरल्ड ऑफ क्राइस्ट्स प्रेज़ेंस नाम दिया गया। उस अंक को बाहर की प्रेस से छपवाया गया था और उसकी अँग्रेज़ी में 6,000 कॉपियाँ छापी गयी थीं। सत्ताईस साल के चार्ल्स टेज़ रसल को उसका संपादक चुना गया और पाँच प्रौढ़ बाइबल विद्यार्थियों को भी चुना गया जो नियमित तौर पर उस पत्रिका के लिए लेख लिखते। आज प्रहरीदुर्ग पत्रिका को 195 भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है। यह पूरी दुनिया में अब तक की सबसे ज़्यादा बाँटी गयी पत्रिका है और इसके हर अंक की 4,21,82,000 कॉपियाँ निकलती हैं। दूसरे स्थान पर आती है, इसकी साथी पत्रिका सजग होइए! जिसकी 4,10,42,000 कॉपियाँ 84 भाषाओं में बाँटी जाती हैं। इनके अलावा, हर साल करीब 10 करोड़ किताबें और बाइबलें छापी जाती हैं।
15. किताबों-पत्रिकाओं को छापने का खर्च कैसे पूरा किया जाता है?
15 इतने बड़े पैमाने पर किया जानेवाला यह काम स्वेच्छा से दिए गए दान से चलाया जाता है। (मत्ती 10:8 पढ़िए।) यह बात छपाई का कारोबार करनेवालों को चकरा देती है, क्योंकि वे जानते हैं कि छपाई की मशीनें, कागज़, स्याही और दूसरे सामान कितने महँगे होते हैं। एक भाई जो बेथेल के छपाईखानों के लिए सामान खरीदता है, कहता है, “बिज़नेस करनेवाले जो लोग हमारे छपाईखानों में आते हैं, वे यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि यहाँ नयी-से-नयी मशीनें इस्तेमाल कर इतनी सारी किताबें-पत्रिकाएँ छापी जाती हैं और इसका सारा खर्च स्वेच्छा से दिए गए दान से चलाया जाता है। उन्हें इस बात से भी ताज्जुब होता है कि बेथेल में सेवा करनेवाले ज़्यादातर लोग जवान हैं और हमेशा हँसते-मुसकुराते नज़र आते हैं।”
पृथ्वी परमेश्वर के ज्ञान से भर जाएगी
16. परमेश्वर ने ‘सच्चा ज्ञान’ किस लिए बढ़ाया है?
16 परमेश्वर ने ‘सच्चा ज्ञान’ इसलिए बढ़ाया है क्योंकि उसकी मरज़ी है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान हासिल करें।” (1 तीमु. 2:3, 4) यहोवा चाहता है कि लोग सच्चाई के बारे में जानें ताकि वे उसकी उपासना सही तरीके से कर सकें और उसकी आशीष पा सकें। उसने प्रचार काम के ज़रिए बचे हुए अभिषिक्त मसीहियों को इकट्ठा किया है। और वह “सब राष्ट्रों और गोत्रों और जातियों और भाषाओं” से “एक बड़ी भीड़” को भी इकट्ठा कर रहा है, जिन्हें धरती पर हमेशा जीने की आशा है।—प्रका. 7:9.
17. सच्चे उपासकों में हुई बढ़ोतरी किस बात का ज़बरदस्त सबूत है?
17 पिछले 130 सालों में पूरी दुनिया में सच्चे उपासकों की गिनती में वाकई कमाल की बढ़ोतरी हुई है! यह इस बात का ज़बरदस्त सबूत है कि परमेश्वर और उसका ठहराया राजा, यीशु मसीह सच्चे उपासकों के साथ हैं। वे उन्हें मार्गदर्शन दे रहे हैं, उनकी हिफाज़त कर रहे हैं, उनको संगठित कर रहे हैं और उन्हें सिखा रहे हैं। यहोवा ने अपना यह वादा पूरा किया है कि हमारे समय में वह बहुत-से लोगों को सच्चाई ढूँढ़ने में मदद देगा। इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि भविष्य के बारे में उसने जो वादे किए हैं, वे भी पूरे होंगे। वह दिन दूर नहीं जब “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशा. 11:9) ज़रा सोचिए, उस वक्त इंसानों को क्या ही शानदार आशीषें मिलेंगी!
[फुटनोट]
^ पैरा. 6 ये डीवीडी देखकर आपको ज़रूर फायदा होगा: जेहोवाज़ विटनेसेज़—फेथ इन ऐक्शन, पार्ट 1: आउट ऑफ डार्कनेस और जेहोवाज़ विटनेसेज़—फेथ इन ऐक्शन, पार्ट 2: लेट द लाइट शाइन।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 6 पर तसवीर]
शुरू के मसीही, नम्र लोग थे जो सच्चे दिल से परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहते थे
[पेज 7 पर तसवीर]
‘सच्चा ज्ञान’ फैलाने में आप जो मेहनत करते हैं, उसकी यहोवा कदर करता है