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क्या जोसीफस ने सचमुच इसे लिखा था?

क्या जोसीफस ने सचमुच इसे लिखा था?

पहली सदी के इतिहासकार फ्लेवियस जोसीफस ने अपनी किताब यहूदी इतिहास, भाग 20 (यूनानी) में याकूब की मौत का ज़िक्र किया, साथ ही यह भी कहा: “यह याकूब, यीशु का भाई था जिसे मसीह भी कहा जाता था।” बहुत-से विद्वान इस बात को सच मानते हैं। लेकिन कुछ विद्वान इसी किताब में यीशु के बारे में लिखी एक और बात पर सवाल उठाते हैं। वह बात किताब के जिस हिस्से में पायी जाती है, उसे टेस्टीमोनियम फ्लाविआनम कहा जाता है। वहाँ लिखा है:

“अब उस वक्‍त के दौरान यीशु नाम का एक बुद्धिमान आदमी था, अगर उसे आदमी कहना गलत नहीं होगा। क्योंकि वह हैरतअँगेज़ काम करता था और उसके सिखाने में ऐसा जादू था कि वह लोगों का ध्यान बाँधे रखता था। यहूदी और गैर-यहूदी, हर किस्म के लोग भारी तादाद में उसकी तरफ खिंचे चले आते थे। वह मसीह था। पीलातुस ने हममें से कुछ नामी आदमियों के कहने पर उसे क्रूस पर चढ़ाने की सज़ा सुनायी। जो उससे प्यार करते थे, उन्होंने उसे नहीं छोड़ा और वह तीसरे दिन दोबारा ज़िंदा होने पर उन्हें दिखायी दिया, ठीक जैसे परमेश्‍वर के नबियों ने इन बातों और इस तरह की हज़ारों शानदार बातों के बारे में भविष्यवाणी की थी। उसके नाम से कहलाए जानेवाले ‘मसीही’ आज तक वजूद में हैं।”—जोसीफस—यहूदी इतिहास, भाग 18 पेज 3, पैरा. 3, (यूनानी)।

गौर कीजिए कि टेस्टीमोनियम में यीशु को मसीह बताया गया है। कुछ विद्वान मानते हैं कि इस हिस्से को जोसीफस ने लिखा था, जबकि कुछ ऐसा नहीं मानते। और 16वीं सदी के आखिर से यही बात उन लोगों के बीच ज़बरदस्त बहस का मुद्दा बनी हुई है। फ्रांसीसी इतिहासकार और यूनानी साहित्य के विशेषज्ञ, सर्श बारडे ने इस बहस की कड़ियों को सुलझाने का बीड़ा उठाया, जो पिछले 400 सालों से उलझती चली जा रही थी। उन्होंने अपनी खोजबीन को एक किताब में प्रकाशित किया जिसका नाम है, ले टेस्टीमोनियम फ्लाविआनम—एग्ज़ामेन हिस्टोरिक कन्सीडेरेशन्स हिस्टोरियोग्राफिक्स।

जोसीफस एक यहूदी थे और यहूदियों के इतिहास के बारे में लिखते थे। वे मसीही लेखक नहीं थे। इसलिए सारा बखेड़ा इसी बात को लेकर खड़ा हुआ कि वे यीशु को “मसीह” कैसे कह सकते थे। जाँच-परख के बाद बारडे का कहना है कि जोसीफस ने यीशु को “मसीह” शायद इसलिए कहा हो क्योंकि यूनानी भाषा में आम तौर पर लोगों का नाम लेने के बजाय उनकी उपाधि इस्तेमाल की जाती थी। बारडे ने आगे कहा कि यहूदी और मसीही धर्म में यह आम धारणा है कि “जोसीफस का ख्रीस्तौस शब्द इस्तेमाल करना नामुमकिन नहीं।” उन्होंने यह भी कहा कि इससे यह सुराग मिलता है कि यीशु सचमुच अस्तित्व में था और इसी सुराग को “आलोचकों ने नज़रअंदाज़ करके बहुत बड़ी गलती की है।”

क्या ऐसा हो सकता है कि आगे चलकर किसी जालसाज़ ने जोसीफस की लेखन-शैली की नकल कर टेस्टीमोनियम में कुछ बातें जोड़ दी हों? इतिहास की और इस पाठ की जाँच करने पर जो सबूत मिले, उससे बारडे इस नतीजे पर पहुँचे कि अगर ऐसा हुआ होता, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होता। बारडे का कहना है कि जोसीफस की ‘लेखन-शैली इतनी अनोखी है कि उनकी नकल करने के लिए एक और जोसीफस को जन्म लेना होगा।’

तो फिर क्यों विद्वान जोसीफस की लिखी बात पर सवाल उठाते हैं? जवाब में बारडे ने कहा कि “अगर दूसरे प्राचीन लेखों की सच्चाई पर उँगली उठायी जाती, तो उन लेखों को सच साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया जाता। मगर टेस्टीमोनियम के साथ ऐसा नहीं किया गया, उसे सिर्फ इसलिए सच नहीं माना गया क्योंकि उसकी सच्चाई पर कई सवाल उठाए गए थे।” फिर उन्होंने कहा कि सदियों से विद्वान अपनी जिस बात पर अड़े हैं, उसके पीछे उनका “स्वार्थ” छिपा है, जबकि सारे सबूत इसी बात की तरफ इशारा करते हैं कि जोसीफस ने ही टेस्टीमोनियम लिखा था।

टेस्टीमोनियम फ्लाविआनम पर की गयी बारडे की खोजबीन से विद्वानों की राय बदलेगी या नहीं यह तो वक्‍त ही बताएगा। मगर इससे कम-से-कम एक विद्वान कायल हुए हैं। उनका नाम पियर शॉलट्रेन है और वे यहूदी धर्म पर हुए यूनानी असर और पहली सदी के मसीही धर्म से जुड़े विषयों के जानकार हैं। वे पहले मानते थे कि टेस्टीमोनियम को बाद में जोड़ा गया था। और-तो-और वे टेस्टीमोनियम पर यकीन करनेवालों की खिल्ली भी उड़ाते थे। लेकिन फिर उन्होंने अपनी राय बदली और वे कहते हैं कि बारडे की किताब ने ही उन्हें अपनी सोच बदलने के लिए कायल किया। शॉलट्रेन का कहना है कि “अब से किसी को भी यह शक करने की गुस्ताखी नहीं करनी चाहिए कि जोसीफस ने ही वह हिस्सा लिखा था।”

बेशक, यहोवा के साक्षियों के पास यीशु को मसीह या मसीहा मानने की इससे भी बड़ी वजह है और वह वजह बाइबल में दी गयी है।—2 तीमु. 3:16.