बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल करना
“प्यारे बच्चो, हम सिर्फ बातों से या ज़ुबान से नहीं बल्कि अपने कामों से और सच्चे दिल से प्यार करें।”—1 यूह. 3:18.
1, 2. (क) बहुत-से परिवारों के आगे कौन-सी मुश्किल चुनौतियाँ आती हैं, और उनके आगे क्या सवाल उठते हैं? (ख) माता-पिता और बच्चे कैसे बदलते हालात का सामना करने के लिए तैयार हो सकते हैं?
यह जानकर आपको बहुत दुख हो सकता है कि आपके माँ-बाप, जो एक वक्त पर तंदुरुस्त थे और अपना खयाल खुद रख सकते थे, अब अपनी देखभाल करने के काबिल नहीं रहे। आपको शायद पता चले कि आपकी मम्मी या पापा गिर गए हैं और उनकी हड्डी टूट गयी है, या कुछ पल के लिए अपनी याददाश्त खो बैठने की वजह से वे अपना रास्ता भटक गए हैं या फिर जाँच करने पर पता चला है कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी है। वहीं दूसरी तरफ, बुज़ुर्गों के लिए भी यह कबूल करना काफी दर्द-भरा हो सकता है कि उनकी सेहत या हालात में बदलाव होने की वजह से अब उनकी आज़ादी काफी हद तक छिन गयी है। (अय्यू. 14:1) उनकी मदद करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? उनकी देखभाल कैसे की जा सकती है?
2 बुज़ुर्गों की देखभाल करने के बारे में लिखा गया एक लेख कहता है: “हालाँकि उम्र ढलने से होनेवाली समस्याओं के बारे में बातचीत करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन जब परिवार के सभी सदस्य मिलकर चर्चा करते हैं और पहले से अच्छी योजना बनाते हैं, तो जब बुज़ुर्गों की सेहत से जुड़े फैसले लेने का वक्त आता है, तब वे सही चुनाव करने के लिए और भी अच्छी तरह तैयार होते हैं।” हमें इस बात को कबूल करना चाहिए कि कभी-न-कभी हमें बुढ़ापे में आनेवाली तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि एक परिवार के तौर पर हम इनका सामना करने के लिए तैयारी करें। परिवार में सभी किस तरह मिलकर, साथ ही, प्यार और परवाह दिखाते हुए ये मुश्किल फैसले ले सकते हैं?
‘विपत्ति के दिनों’ से निपटने के लिए तैयारी करना
3. जब बुज़ुर्ग माता-पिता खुद की देखभाल करने के काबिल नहीं रहते, तो परिवार के सदस्य क्या कर सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
3 कभी-न-कभी वह घड़ी आती है, जब कई माता-पिता खुद की देखभाल करने के काबिल नहीं रहते और उन्हें मदद की ज़रूरत पड़ती है। (सभोपदेशक 12:1-7 पढ़िए।) जब ऐसा होता है, तो बुज़ुर्ग माता-पिता और उनके बच्चों को अपनी आर्थिक हालत को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लेना चाहिए कि किस तरह की देखभाल उनके लिए सबसे सही रहेगी। अच्छा होगा अगर परिवार के सभी सदस्य एक बैठक रखें और मिलकर चर्चा करें कि किस तरह की मदद की ज़रूरत है, वह मदद कैसे दी जाए और कैसे सभी सदस्य इसमें सहयोग दे सकते हैं। सभी सदस्यों को, खासकर माता-पिता को, खुलकर अपनी भावनाएँ बतानी चाहिए और हालात का सही-सही जायज़ा लेना चाहिए। चर्चा कीजिए कि अगर उन्हें थोड़ी-बहुत मदद दी जाए, तो क्या वे आगे भी अकेले रहकर अपना गुज़ारा कर पाएँगे? a यह भी चर्चा कीजिए कि माता-पिता की ज़रूरी देखभाल के लिए हरेक सदस्य क्या कर सकता है। (नीति. 24:6) मिसाल के लिए, कुछ सदस्य रोज़मर्रा के कामों में हाथ बँटाकर मदद दे सकते हैं, तो कुछ आर्थिक मदद दे सकते हैं। सभी को पता होना चाहिए कि उनकी क्या ज़िम्मेदारी है। लेकिन समय के चलते हो सकता है उन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों में फेरबदल करनी पड़े और परिवार के सदस्यों को बारी-बारी से अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ निभानी पड़ें।
4. जब हालात बदलते हैं, तो परिवार के सदस्य कहाँ से मदद पा सकते हैं?
4 जब आप अपने माँ-बाप की देखभाल करना शुरू करते हैं, तो उनकी बीमारी के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा जानने के लिए समय निकालिए, ताकि आप उनकी बीमारी से अच्छी तरह वाकिफ हो सकें। अगर उनमें से किसी एक को ऐसी बीमारी है, जिससे उनकी हालत बिगड़ती जाएगी, तो पता लगाइए कि आप आगे क्या होने की उम्मीद कर सकते हैं। (नीति. 1:5) अपने इलाके में ऐसे सरकारी दफ्तरों से संपर्क कीजिए, जो बुज़ुर्गों को ज़रूरी सेवाएँ मुहैया कराते हैं। जानिए कि ऐसी कौन-सी सेवाएँ उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से आपके माँ-बाप की बेहतर देखभाल हो पाएगी, साथ ही आपके लिए भी उनकी देखभाल करना थोड़ा आसान हो जाएगा। हो सकता है आपके परिवार में अचानक से आए इस बदलाव की वजह से आप बहुत उदास हो जाएँ, आपको हैरानी हो या फिर समझ में न आए कि अब आपको क्या करना है। ऐसे समय पर, आप अपनी भावनाएँ किसी भरोसेमंद दोस्त को बता सकते हैं। और सबसे ज़रूरी, यहोवा को अपने दिल की बात बताइए। वह आपको ऐसी शांति देगा, जिससे आप किसी भी हालात का सामना कर पाएँगे।—भज. 55:22; नीति. 24:10; फिलि. 4:6, 7.
5. आगे चलकर माता-पिता की देखभाल कैसे की जा सकती है इस बारे में पहले से ही जानकारी इकट्ठी करना क्यों समझदारी है?
5 अच्छा होगा अगर बुज़ुर्ग जन और उनके परिवार के सदस्य, समझदारी दिखाते हुए पहले ही जानकारी इकट्ठी कर लें कि आगे चलकर माता-पिता की देखभाल कैसे की जाएगी। मिसाल के लिए, वे पहले से ही सोचकर रख सकते हैं कि माता-पिता के लिए कहाँ रहना ज़्यादा कारगर रहेगा, अपने बेटे या बेटी के साथ, अपने ही घर जहाँ उन्हें मदद दी जाए, या कहीं और। इस तरह परिवार पहले से ही खुद को उस “कष्ट और शोक” के लिए तैयार कर सकता है, जो बुढ़ापे के साथ आता है। (भज. 90:10) जो परिवार पहले से योजना नहीं बनाते, अचानक हालात बदलने पर, उन्हें मजबूर होकर जल्दबाज़ी में फैसले लेने पड़ते हैं। एक विशेषज्ञ के मुताबिक यह समय हमेशा “इस तरह के फैसले लेने का सबसे बदतर समय होता है।” जब फैसले ऐन वक्त पर लिए जाते हैं, तब परिवार के सदस्य तनाव में होते हैं और हो सकता है तब वे इस बात पर एकमत न हों कि क्या किया जाना चाहिए। लेकिन जब हम पहले से योजना बनाते हैं, तो हालात के मुताबिक फेरबदल करने में हमें आसानी होती है।—नीति. 20:18.
6. इस बारे में बात करना क्यों मददगार होगा कि माता-पिता उम्र ढलने पर कहाँ और कैसे रहेंगे?
6 माता-पिता उम्र ढलने पर कहाँ और कैसे रहेंगे इस बारे में उनसे बात करना शायद आपको अजीब लगे। लेकिन बहुतों ने कहा है कि इस तरह की बातचीत उनके लिए आगे चलकर काफी मददगार साबित हुई है। क्यों? क्योंकि हालात बिगड़ने से पहले मुश्किल मामलों पर बात करना, आदर दिखाते हुए एक-दूसरे की सुनना और कारगर योजनाएँ बनाना ज़्यादा आसान होता है। जब परिवार के सदस्य आराम से बैठकर एक-दूसरे को खुलकर अपनी राय बताने में वक्त बिताते हैं, तो वे एक-दूसरे के करीब महसूस करते हैं और उन्हें इस बात का एहसास होता है कि वे एक-दूसरे से कितना प्यार करते हैं। हो सकता है बुज़ुर्ग माँ-बाप चाहते हों कि जब तक हो सके वे अलग ही रहें। इसलिए अच्छा होगा अगर माँ-बाप अपने बच्चों को पहले से बताएँ कि ज़रूरत पड़ने पर वे किस तरह की देखभाल पसंद करेंगे। इससे सभी को उस वक्त बहुत मदद मिलेगी, जब देखभाल से जुड़े फैसले लिए जा रहे हों।
7, 8. (क) परिवार को किस बारे में बात करनी चाहिए? (ख) यह क्यों ज़रूरी है?
7 माता-पिताओ, इस तरह की चर्चा के दौरान अपने परिवार को बताइए कि आप क्या चाहते हैं, आप कितना पैसा खर्च कर सकते हैं, और आपको कौन-से सुझाव अच्छे लगे। फिर अगर किसी दिन आप अपने लिए फैसले नहीं ले पाते, तो बच्चे आपकी इच्छा के मुताबिक आपके लिए फैसले ले सकेंगे। मुमकिन है वे आपकी भावनाओं की कदर करेंगे और जहाँ तक हो सके, आपको अपने फैसले खुद लेने देंगे। (इफि. 6:2-4) उदाहरण के लिए, क्या आप अपने किसी बच्चे से यह उम्मीद कर रहे हैं कि वह आपको अपने परिवार के साथ रहने का न्यौता दे? या आपके मन में कुछ और है? हालात का सही-सही जायज़ा लीजिए। याद रखिए, यह ज़रूरी नहीं कि परिवार में सभी की राय वही हो, जो आपकी है। यह भी याद रखिए कि सभी को, फिर चाहे वे माता-पिता हों या बच्चे, अपनी सोच बदलने में वक्त लगता है।
8 जब हम पहले से अच्छी योजना बनाते हैं और एक-दूसरे से खुलकर बातचीत करते हैं, तो हम बहुत-सी मुश्किलों से बच सकते हैं। (नीति. 15:22) अपने परिवार से अपने इलाज के बारे में बात कीजिए और उन्हें बताइए कि आपको इलाज का कौन-सा तरीका कबूल होगा। इस चर्चा में यहोवा के साक्षियों के ‘एडवांस मेडिकल डाइरेक्टिव’ कार्ड में दिए मुद्दे भी शामिल किए जाने चाहिए। हर व्यक्ति को यह जानने का अधिकार है कि इलाज के कौन-कौन-से तरीके उपलब्ध हैं। इसके अलावा, उसे इलाज का कोई भी तरीका अपनाने या ठुकराने का भी हक है। ‘एडवांस मेडिकल डाइरेक्टिव’ कार्ड से पता चल सकता है कि एक व्यक्ति ने इलाज के मामले में क्या चुनाव किए हैं। आप किसी भरोसेमंद व्यक्ति (इमरजैंसी कॉन्टैक्ट) को ठहरा सकते हैं, ताकि मुसीबत की घड़ी में वह आपके लिए इलाज से जुड़े फैसले ले सके। बुज़ुर्ग जनों, उनकी देखभाल करनेवालों और इमरजैंसी कॉन्टैक्ट, सभी के पास इस कार्ड की कॉपियाँ होनी चाहिए, ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह उपलब्ध हो। कुछ बुज़ुर्ग जन इस कार्ड को अपने वसीयतनामे, बीमा पॉलिसी, बैंक और सरकारी कागज़ात वगैरह के साथ रखते हैं।
बदलते हालात से जूझना
9, 10. माँ-बाप को शायद किन हालात में अपने बच्चों से ज़्यादा मदद की ज़रूरत पड़ सकती है?
9 ज़्यादातर मामलों में, परिवार के सदस्य नहीं चाहते कि बुज़ुर्ग माता-पिता की आज़ादी छिन जाए। जब तक माँ-बाप खुद खाना बना सकते हैं, साफ-सफाई कर सकते हैं, दवाइयाँ ले सकते हैं और ठीक से बात कर सकते हैं, तब तक शायद बच्चों को अपने माँ-बाप की ज़िंदगी के हर पहलू को काबू में रखने की ज़रूरत न पड़े। लेकिन अगर वक्त के गुज़रते, माँ-बाप के लिए चलना-फिरना या खरीदारी करना मुश्किल हो जाता है, या वे हद-से-ज़्यादा भूलने लगते हैं, तो ऐसे में बच्चों को शायद कुछ बदलाव करने पड़ें।
10 ऐसा भी हो सकता है कि कभी-कभी बुज़ुर्गों को बातें समझने में दिक्कत होने लगे या फिर वे निराश हो जाएँ। शायद उन्हें सुनायी कम देने लगे, उनकी नज़र कमज़ोर पड़ जाए, उनकी याददाश्त कमज़ोर होने लगे, या फिर उन्हें शौचालय इस्तेमाल करने में परेशानी होने लगे। अगर इनमें से कोई हालात पैदा होते हैं, तो इलाज करवाना मददगार साबित हो सकता है। जैसे ही इनमें से कोई तकलीफ शुरू होती है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाइए। हो सकता है डॉक्टर से मिलने का दिन तय करने के लिए या दूसरे निजी मामलों में उन्हें मदद देने के लिए बच्चों को पहल करनी पड़े। इस बात को पक्का करने के लिए कि बुज़ुर्ग माता-पिता का अच्छे-से-अच्छा इलाज हो सके, हो सकता है बच्चों को उनकी तरफ से बात करनी पड़े, उनके कागज़ात से जुड़े कामों में उन्हें मदद देनी पड़े, डॉक्टर से मिलवाने ले जाना पड़े, वगैरह।—नीति. 3:27.
11. क्या किया जा सकता है जिससे माँ-बाप के लिए फेरबदल के मुताबिक खुद को ढालना आसान हो सके?
11 अगर आपके माँ-बाप को कोई ऐसी बीमारी है, जो ठीक नहीं हो सकती, तो आपको शायद उनकी देखभाल से जुड़े इंतज़ामों में या फिर उनके घर में कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत पड़े। फेरबदल जितने कम होंगे, उतना ही उनके लिए उसके हिसाब से खुद को ढालना आसान होगा। अगर आप अपने माँ-बाप से दूर रहते हैं, तो किसी साक्षी या पड़ोसी का समय-समय पर उनसे मिलने जाना और आपको बताते रहना कि आपके माँ-बाप कैसे हैं, शायद काफी हो। क्या उन्हें सिर्फ खाना बनाने और साफ-सफाई में ही मदद चाहिए? क्या घर में छोटे-मोटे फेरबदल करने से उनके लिए घर में चलना-फिरना, नहाना और बाकी के काम करना आसान होगा और क्या ऐसा करने से वे ज़्यादा सुरक्षित रहेंगे? हो सकता है बुज़ुर्ग जनों को अलग रहने के लिए बस एक ऐसे व्यक्ति को नौकरी पर रखना काफी हो, जो उनकी देखभाल कर सके। लेकिन अगर उन्हें हर समय देखभाल की ज़रूरत है और अब अकेले रहना उनके लिए सुरक्षित नहीं है, तो हो सकता है आपको कुछ ठोस कदम उठाने पड़ें। हालात चाहे जो भी हों, पता लगाइए कि उनके इलाके में बुज़ुर्गों की देखभाल से जुड़ी क्या-क्या सेवाएँ उपलब्ध हैं। b—नीतिवचन 21:5 पढ़िए।
कुछ लोग इस चुनौती का सामना कैसे कर रहे हैं?
12, 13. कुछ बच्चों ने दूर रह रहे अपने बुज़ुर्ग माता-पिता का आदर और उनकी देखभाल करने के लिए क्या किया है?
12 हम अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते हैं इसलिए हम चाहते हैं कि वे आराम से रहें। हमें यह जानकर तसल्ली मिलती है कि हमारे माता-पिता की अच्छी देखभाल की जा रही है। लेकिन हालात की वजह से बहुत-से बच्चे अपने बुज़ुर्ग माता-पिता के पास नहीं रहते। ऐसे में, कुछ बच्चे छुट्टी लेकर अपने माता-पिता से मिलने आते हैं और ऐसे ज़रूरी काम निपटाने में माँ-बाप की मदद करते हैं जो अब वे खुद नहीं कर सकते। बच्चे समय-समय पर या फिर रोज़ाना अपने माता-पिता से फोन पर बात करके, उन्हें खत लिखकर, या ई-मेल भेजकर यह दिखा सकते हैं कि वे उनसे कितना प्यार करते हैं।—नीति. 23:24, 25.
13 भले ही आप अपने बुज़ुर्ग माता-पिता से दूर रहते हों, फिर भी आपको तय करना होगा कि आपके माता-पिता को रोज़ाना किस तरह की देखभाल की ज़रूरत है। अगर आपका घर उनके घर के पास नहीं है, और अगर वे साक्षी हैं, तो आप उनकी मंडली के प्राचीनों से उनकी देखभाल के विषय में बात कर सकते हैं और उनसे सलाह ले सकते हैं। सबसे ज़रूरी, अपने माता-पिता के लिए यहोवा से प्रार्थना कीजिए। (नीतिवचन 11:14 पढ़िए।) अगर आपके माता-पिता साक्षी न भी हों, तब भी आपको “अपने पिता और अपनी माता का आदर करना” चाहिए। (निर्ग. 20:12; नीति. 23:22) बेशक, माता-पिता की देखभाल से जुड़े मामलों में सभी परिवार एक जैसे फैसले नहीं लेंगे। कुछ परिवार फैसला करते हैं कि उनके बुज़ुर्ग माता-पिता उनके साथ उन्हीं के घर में या उनके घर के पास रहें। लेकिन ऐसा हमेशा मुमकिन नहीं हो पाता। कुछ माता-पिता शायद अपने बच्चों और उनके परिवार के साथ रहना न चाहें। वे शायद अलग रहना चाहते हों और अपने बच्चों पर बोझ न बनना चाहते हों। और कुछ शायद ऐसे भी हों, जो अपनी देखभाल के लिए किसी को नौकरी पर रख सकते हैं और उन्हें शायद यह इंतज़ाम ज़्यादा पसंद हो।—सभो. 7:12.
14. जो सबसे ज़्यादा देखभाल करते हैं, उनके आगे क्या परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं?
14 कई परिवारों में देखा गया है कि जो बेटा या बेटी अपने बुज़ुर्ग माँ-बाप के घर के सबसे पास रहता है, वही उनकी सबसे ज़्यादा देखभाल करता है। लेकिन उन्हें अपने बुज़ुर्ग माँ-बाप की देखभाल करने और अपने खुद के परिवार की देखभाल करने के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। एक व्यक्ति के पास जितना समय और जितनी ताकत होती है, उसकी एक सीमा होती है। इतना ही नहीं, हो सकता है देखभाल करनेवाले के हालात भी बदल जाएँ, जिससे परिवार को शायद मौजूदा इंतज़ामों के बारे में फिर से चर्चा करनी पड़े। क्या परिवार के एक सदस्य पर कुछ ज़्यादा ही ज़िम्मेदारियाँ हैं? क्या दूसरे बच्चे थोड़ी और मदद दे सकते हैं, शायद बारी-बारी से माँ-बाप की देखभाल करके?
15. बुज़ुर्ग माँ या पिता की देखभाल करनेवाला पूरी तरह पस्त न हो जाए, इसके लिए क्या किया जा सकता है?
15 जब बुज़ुर्ग माँ या पिता को हर वक्त देखभाल की ज़रूरत पड़ती है, तो जो खास तौर से उनकी देखभाल करता है, उसके पूरी तरह पस्त हो जाने का खतरा हो सकता है। (सभो. 4:6) जो बच्चे अपने माता-पिता से प्यार करते हैं, वे उनके लिए जितना हो सके, उतना करना चाहते हैं। लेकिन इस तरह लगातार उनकी देखभाल करते रहना बच्चों के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है। इसलिए उन्हें हालात का सही-सही जायज़ा लेना चाहिए। हो सकता है उन्हें मदद माँगनी पड़े। अगर समय-समय पर देखभाल करनेवालों को मदद दी जाए, तो उनका काम काफी आसान हो जाएगा।
16, 17. बुज़ुर्ग माता-पिताओं का खयाल रखनेवाले कई बच्चे किन भावनाओं से गुज़रते हैं? क्या बात उन्हें अपनी भावनाओं को समझने और सही संतुलन बनाए रखने में मदद दे सकती है? (बक्स “देखभाल करने के लिए एहसानमंद” भी देखिए।)
16 अपने प्यारे माता-पिता को ढलती उम्र में होनेवाली तकलीफें झेलते देखकर हमें बहुत दुख होता है। उनका खयाल रखनेवाले कई बच्चे यह देखकर कभी-कभी उदास हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं, खुद को दोषी महसूस करने लगते हैं, उन्हें चिंता होती है, रह-रहकर गुस्सा आता है, यहाँ तक कि कई बार तो वे अपने दिल में नाराज़गी भी पालने लगते हैं। और-तो-और, कभी-कभी बुज़ुर्ग माँ या पिता ठेस पहुँचानेवाली बातें कह देते हैं या बच्चों की मेहनत की कदर नहीं करते। अगर आपके साथ ऐसा होता है, तो कोशिश कीजिए कि आप उनकी बातों को दिल पर न लें। मानसिक सेहत के एक विशेषज्ञ का कहना है: ‘किसी भी भावना से, खासकर ठेस लगने पर उठनेवाली भावना से, जूझने का सबसे बढ़िया तरीका है, यह कबूल करना कि हममें यह भावना पनप रही है। खुद को हद-से-ज़्यादा दोषी मत ठहराइए कि आपको ऐसा महसूस हो रहा है।’ अपने साथी, परिवार के किसी सदस्य या फिर एक भरोसेमंद दोस्त को बताइए कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। इससे आपको अपनी भावनाओं को समझने में मदद मिलेगी और आप एक सही संतुलन बनाए रख पाएँगे।
17 हो सकता है एक वक्त आए जब आपके बुज़ुर्ग माता-पिता को लगातार देखभाल की ज़रूरत पड़े और जब परिवार के सदस्य किसी वजह से उनकी लगातार देखभाल न कर पाएँ। ऐसे में शायद उन्हें उनकी 24 घंटे देखभाल करने के लिए कोई इंतज़ाम करना पड़े। एक मसीही बहन लगभग हर दिन एक नर्सिंग होम में अपनी माँ से मिलने जाया करती थी। वह कहती है: “माँ को पूरे 24 घंटे देखभाल की ज़रूरत थी और हम उनकी उस हद तक देखभाल नहीं कर पा रहे थे। उन्हें नर्सिंग होम में डालने का फैसला करना हमारे लिए आसान नहीं था। हमें उनसे बहुत लगाव था और उन्हें वहाँ भेजना हमारे लिए बहुत-बहुत मुश्किल था। लेकिन उनकी ज़िंदगी के आखिरी महीनों के लिए यही सबसे सही फैसला था। और माँ भी इस फैसले से सहमत थीं।”
18. बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल करनेवाले किस बात का यकीन रख सकते हैं?
18 जैसे-जैसे आपके माता-पिता की उम्र ढलती है, उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारियाँ निभाना बहुत ही पेचीदा साबित हो सकता है। और हो सकता है इन ज़िम्मेदारियों को पूरा करते वक्त आप तरह-तरह की भावनाओं से गुज़रें। जब बुज़ुर्गों की देखभाल करने की बात आती है, तो कोई एक ऐसा निश्चित तरीका नहीं है, जो सभी के लिए कारगर हो। फिर भी, अगर आप पहले से अच्छी योजना बनाएँ, अपने परिवार को सहयोग दें, खुलकर बातचीत करें और सबसे ज़रूरी, यहोवा से प्रार्थना करें, तो आप अपने अज़ीज़ जनों का आदर करने की अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा पाएँगे। ऐसा करने से आप यकीन रख सकते हैं कि आपको इस बात की संतुष्टि होगी कि जिस देखभाल की उन्हें ज़रूरत है, वह आप उन्हें दे पा रहे हैं। (1 कुरिंथियों 13:4-8 पढ़िए।) और सबसे बढ़कर, आपको मन की शांति और यहोवा की आशीष मिलेगी।—फिलि. 4:7.
a माता-पिता और बच्चे क्या चुनाव करते हैं, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि वे कहाँ रहते हैं और वहाँ के रिवाज़ क्या हैं। मिसाल के लिए, कुछ संस्कृतियों में बुज़ुर्ग माता-पिताओं का अपने बच्चों के साथ रहना या उनसे संपर्क बनाए रखना आम बात है और वे ऐसा पसंद भी करते हैं। जबकि कुछ जगहों पर माता-पिता अलग से या बुज़ुर्गों के लिए बनी खास जगहों पर रहना पसंद करते हैं।
b अगर आपके माँ-बाप अब भी अपने घर पर रह रहे हैं, तो ध्यान रखिए कि उनकी देखभाल करनेवाले भरोसेमंद लोगों के पास उनके घर की चाबियाँ हों, ताकि मुसीबत की घड़ी में उनकी मदद की जा सके।