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यीशु की तरह नम्रता और कोमलता दिखाइए

यीशु की तरह नम्रता और कोमलता दिखाइए

“मसीह ने . . . तुम्हारी खातिर दुःख उठाया और तुम्हारे लिए एक आदर्श छोड़ गया ताकि तुम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो।”—1 पत. 2:21.

1. यीशु की मिसाल पर चलने से हम यहोवा के करीब क्यों आ पाते हैं?

हम अकसर ऐसे लोगों की तरह बनने की कोशिश करते हैं, जो हमें अच्छे लगते हैं। आज तक इस दुनिया में जितने भी इंसान जीए हैं, उनमें से कोई भी यीशु की बराबरी नहीं कर पाया है। जी हाँ, यीशु से बेहतर कोई ऐसा शख्स नहीं, जिसकी मिसाल पर हम चल सकते हैं। उसकी मिसाल पर हमें क्यों चलना चाहिए? खुद यीशु ने एक बार कहा था: “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूह. 14:9) यीशु ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसने हमेशा अपने पिता की तरह बनने की कोशिश की है। तो जब हम यीशु की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं, तो दरअसल हम यहोवा की मिसाल पर चलने की कोशिश कर रहे होते हैं। नतीजा? हम यहोवा के करीब आ पाते हैं, जो इस विश्व की सबसे महान हस्ती है। यीशु की मिसाल पर चलने का क्या ही बढ़िया इनाम!

2, 3. (क) यहोवा ने बाइबल में यीशु की छवि क्यों पेश की? (ख) अपने बेटे की मिसाल पर चलने के मामले में यहोवा हमसे क्या चाहता है? (ग) हम इस लेख में और अगले लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?

2 लेकिन यीशु की मिसाल पर चलने के लिए यह भी तो ज़रूरी है कि पहले हम उसके बारे में जानें, कि वह किस तरह का शख्स है। यह हम कहाँ से जान सकते हैं? बाइबल से। बाइबल में यहोवा ने यीशु की एक बहुत ही खूबसूरत छवि पेश की है। क्यों? क्योंकि वह चाहता है कि हम उसके बेटे को जानें, ताकि हम उसकी मिसाल पर नज़दीकी से चल सकें। (1 पतरस 2:21 पढ़िए।) बाइबल में यीशु की मिसाल पर चलने की तुलना उसके नक्शे-कदम पर चलने के साथ की गयी है। यह ऐसा है मानो यीशु हमसे आगे-आगे चलते हुए अपने पैरों की छाप छोड़ता गया है और अब यहोवा चाहता है कि हम अपने कदमों को उस छाप से मिलाते जाएँ। यह सच है कि यीशु सिद्ध था, जबकि हम असिद्ध हैं। इसलिए यहोवा हमसे यह उम्मीद नहीं करता कि हम हू-ब-हू उसके नक्शे-कदम पर चलें। लेकिन वह चाहता है कि हम उसकी मिसाल पर चलने की पूरी कोशिश करें।

3 आइए अब हम यीशु के कुछ खूबसूरत गुणों पर गौर करें। इस लेख में हम उसकी नम्रता और कोमलता के गुणों पर चर्चा करेंगे। और अगले लेख में हम उसकी हिम्मत और समझदारी के गुणों के बारे में चर्चा करेंगे। हर गुण पर चर्चा करते वक्‍त हम इन तीन सवालों के जवाब जानेंगे: उस गुण का क्या मतलब है? यीशु ने वह गुण कैसे दिखाया? हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

यीशु नम्र है

4. नम्रता क्या है?

4 नम्रता क्या है? घमंड से भरी इस दुनिया में नम्रता को कमज़ोरी की निशानी और आत्म-विश्वास की कमी समझा जाता है। लेकिन सच तो यह है कि नम्र होने के लिए एक इंसान को ताकत और हिम्मत की ज़रूरत होती है। नम्रता की परिभाषा इस तरह दी गयी है, “एक ऐसा रवैया जो घमंड और अहंकार से बिलकुल उलट है।” बाइबल में शब्द “नम्रता” का अनुवाद “मन की दीनता” भी किया जा सकता है। (फिलि. 2:3) नम्र होने के लिए, सबसे पहले ज़रूरी है कि एक इंसान खुद के बारे में सही नज़रिया रखे। मिसाल के लिए, बाइबल का एक शब्दकोश कहता है: “यह कबूल करना कि हम परमेश्वर के सामने कुछ भी नहीं, नम्रता की निशानी है।” साथ ही, अगर हम नम्र होंगे, तो हम यह कभी नहीं सोचेंगे कि हम दूसरों से बढ़कर हैं। (रोमि. 12:3) असिद्ध इंसानों के लिए नम्रता दिखाना आसान नहीं है। लेकिन अगर हम यहोवा की महानता पर मनन करें और यीशु की मिसाल पर चलें, तो हम नम्र होना सीख सकते हैं।

5, 6. (क) प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल कौन है? (ख) मीकाएल ने नम्रता का गुण कैसे दिखाया?

5 यीशु ने नम्रता कैसे दिखायी? परमेश्वर का बेटा हमेशा से ही नम्रता दिखाता आया है। उसने स्वर्ग में एक शक्‍तिशाली स्वर्गदूत के तौर पर भी नम्रता दिखायी और धरती पर आने के बाद एक सिद्ध इंसान के तौर पर भी। आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें।

6 उसका रवैया। यहूदा की किताब में हम यीशु के धरती पर आने से पहले की ज़िंदगी के बारे में पढ़ते हैं। (यहूदा 9 पढ़िए।) वहाँ बताया गया है कि प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल के नाते, यीशु की “मूसा की लाश के मामले में शैतान के साथ बहस हुई।” याद कीजिए कि मूसा की मौत के बाद, यहोवा ने उसकी लाश को एक ऐसी जगह दफनाया था, जहाँ कोई भी इंसान उसे नहीं ढूँढ़ सकता था। (व्यव. 34:5, 6) शायद शैतान मूसा की लाश का झूठी उपासना के लिए इस्तेमाल करके इसराएलियों को बहकाना चाहता था। शैतान का मनसूबा चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मीकाएल ने हिम्मत दिखायी और उसके मनसूबे को कामयाब नहीं होने दिया। एक किताब बताती है कि इस आयत में शब्द “बहस” के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल किया गया है, वह “कानूनी वाद-विवाद” के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है और ये शब्द शायद दिखाते हैं कि “मीकाएल ने मूसा की लाश को पाने के ‘इब्लीस के हक को चुनौती दी।’” लेकिन मीकाएल अपनी हद जानता था। वह जानता था कि यहोवा ने अभी उसे न्याय करने का अधिकार नहीं दिया है। इसलिए उसने यह मामला सबसे बड़े न्यायी, यहोवा के हाथ में छोड़ दिया। भड़काए जाने पर भी उसने अपनी हद पार नहीं की। नम्रता की क्या ही बेहतरीन मिसाल!

7. यीशु ने अपनी बातों और अपने कामों से नम्रता कैसे दिखायी?

7 धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने अपनी बातों और कामों से भी नम्रता दिखायी। उसकी बातें। यीशु ने कभी अपनी बातों से दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, उसने सारी महिमा अपने पिता को दी। (मर. 10:17, 18; यूह. 7:16) यीशु ने कभी अपनी बातों से अपने चेलों को नीचा नहीं दिखाया। इसके बजाय, वह उनके साथ गरिमा से पेश आया, उसने उनके अच्छे गुणों की तारीफ की और उन्हें जताया कि वह उन पर भरोसा करता था। (लूका 22:31, 32; यूह. 1:47) उसके काम। यीशु ने एक सादगी-भरी ज़िंदगी जीने का चुनाव किया। उसने ढेर सारी चीज़ें नहीं बटोरीं। (मत्ती 8:20) वह छोटे-से-छोटा काम करने के लिए भी तैयार रहता था। (यूह. 13:3-15) यीशु ने आज्ञा मानकर भी नम्रता की एक बेहतरीन मिसाल कायम की। (फिलिप्पियों 2:5-8 पढ़िए।) जो घमंडी होते हैं, वे दूसरों की आज्ञा मानना ज़रा भी पसंद नहीं करते। लेकिन यीशु ने नम्रता दिखाते हुए, वह सब किया जो यहोवा ने उसे करने के लिए कहा था। उसने इस हद तक आज्ञा मानी कि उसने “मौत भी सह ली।” वाकई, इंसान का बेटा, यीशु “दिल से दीन” था।—मत्ती 11:29.

यीशु की नम्रता की मिसाल पर चलिए

8, 9. हम यीशु की तरह नम्रता कैसे दिखा सकते हैं?

8 हम यीशु की तरह नम्रता कैसे दिखा सकते हैं? हमारा रवैया। नम्रता का गुण हमें यह समझने में मदद देता है कि हमारी हदें क्या हैं। जब हमें इस बात का एहसास होता है कि हमें दूसरों का न्याय करने का अधिकार नहीं दिया गया है, तो हम दूसरों पर दोष नहीं लगाते और न ही उनके इरादों पर सवाल उठाते हैं। (लूका 6:37; याकू. 4:12) नम्रता का गुण हमारी मदद करता है कि हम खुद को “बहुत धर्मी” न समझें। इसका मतलब है कि हम खुद को ऐसे लोगों से बेहतर नहीं समझते, जिनमें हमारी तरह काबिलीयतें नहीं हैं या जिन्हें वे ज़िम्मेदारियाँ नहीं मिली हैं, जो हमें मिली हैं। (सभो. 7:16) नम्र प्राचीन खुद को दूसरे भाई-बहनों से बेहतर नहीं समझते। इसके बजाय, प्यार करनेवाले ये चरवाहे “दूसरों को खुद से बेहतर” समझते हैं और दूसरों को खुद से ज़्यादा अहमियत देते हैं।—फिलि. 2:3; लूका 9:48.

9 भाई डब्ल्यू. जे. थॉर्न पर गौर कीजिए, जिन्होंने 1894 से पिलग्रिम, या सफरी निगरान के तौर पर सेवा करनी शुरू की। इस सेवा में कई साल बिताने के बाद, उन्हें न्यू यॉर्क के उत्तरी इलाके में बसे किंगडम फार्म में मुर्गियों के दड़बे में काम करने की ज़िम्मेदारी दी गयी। एक दफा उन्होंने कहा: “जब कभी मैं खुद को बहुत ज़्यादा समझने लगता हूँ, तो मैं खुद को मानो एक कोने में ले जाता हूँ और कहता हूँ: ‘अरे धूल के कण। तेरे पास ऐसा क्या है, कि तू खुद पर इतना घमंड कर रहा है?’” (यशायाह 40:12-15 पढ़िए।) नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल थे भाई थॉर्न!

10. हम अपनी बातों और अपने कामों से नम्रता कैसे दिखा सकते हैं?

10 हमारी बातें। अगर हमारे दिल में नम्रता है, तो यह हमारी बातों से भी झलकेगी। (लूका 6:45) दूसरों से बातचीत करते वक्‍त, हम उनका ध्यान अपनी ज़िम्मेदारियों और कामयाबियों पर नहीं खीचेंगे। (नीति. 27:2) इसके बजाय, हम अपने भाई-बहनों के अच्छे कामों की तारीफ करेंगे और उनके अच्छे गुणों और काबिलीयतों पर ध्यान देंगे। (नीति. 15:23) हमारे काम। नम्र मसीही इस दुनिया में नाम कमाने की कोशिश नहीं करते। इसके बजाय, वे सादगी-भरी ज़िंदगी जीने का चुनाव करते हैं, यहाँ तक कि मामूली काम भी करते हैं, ताकि वे यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा कर सकें। (1 तीमु. 6:6, 8) सबसे बढ़कर, हम आज्ञा मानकर नम्रता दिखा सकते हैं। मंडली में ‘जो अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानने’ और यहोवा के संगठन से मिलनेवाले निर्देशों को कबूल करने के लिए नम्रता की ज़रूरत है।—इब्रा. 13:17.

यीशु कोमल स्वभाव का है

11. कोमलता क्या है?

11 कोमलता क्या है? “कोमलता” प्यार का एक पहलू है और यह दया और करुणा जैसी ही एक भावना है, जिससे एक व्यक्‍ति की परवाह झलकती है। बाइबल “कोमल करुणा,” “कोमल दया” और “कोमल स्नेह” का ज़िक्र करती है। (लूका 1:78; 2 कुरिं. 1:3; 7:15) बाइबल के बारे में लिखी एक किताब कहती है कि कोमलता से पेश आने में ज़रूरतमंदों पर सिर्फ तरस खाना ही नहीं, बल्कि उनके लिए कुछ करने के लिए उभारे जाना भी शामिल है। जी हाँ, कोमलता का गुण एक शख्स को दूसरों की ज़िंदगी सँवारने के लिए उभारता है।

12. (क) क्या बात दिखाती है कि यीशु ने दूसरों के लिए कोमल करुणा महसूस की? (ख) कोमलता के गुण ने उसे क्या करने के लिए उभारा?

12 यीशु ने कोमलता कैसे दिखायी? उसकी कोमल भावनाएँ और उसके कोमलता से भरे काम। यीशु ने दूसरों के लिए कोमल करुणा महसूस की। जब उसने अपनी दोस्त मरियम और दूसरों को लाज़र की मौत पर शोक मनाते हुए देखा, तो उसके भी “आंसू बहने लगे।” (यूहन्ना 11:32-35 पढ़िए।) फिर जिस कोमल करुणा ने उसे कुछ समय पहले एक विधवा के बेटे को जी उठाने के लिए उभारा था, उसी गुण से उभारे जाकर उसने लाज़र को ज़िंदा किया। (लूका 7:11-15; यूह. 11:38-44) करुणा से भरकर यीशु ने जो काम किया उससे शायद लाज़र को एक और सम्मान मिला, स्वर्ग में जीवन पाने की आशा। इससे पहले एक मौके पर यीशु ने उसके पास इकट्ठी हुई एक भीड़ के लिए “कोमल स्नेह महसूस” किया। और करुणा से उभारे जाकर उसने ‘उन्हें बहुत-सी बातें सिखायीं।’ (मर. 6:34; किंगडम इंटरलीनियर) यीशु की कोमल करुणा ने वाकई उन लोगों की ज़िंदगी सँवार दी, जिन्होंने उसकी शिक्षाओं को माना था! जी हाँ, यीशु की कोमल करुणा सिर्फ एक भावना नहीं थी, जिसे वह सिर्फ अपने दिल में महसूस करता था। बल्कि इस गुण ने उसे ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए भी उभारा।—मत्ती 15:32-38; 20:29-34; मर. 1:40-42.

13. यीशु ने दूसरों से बात करते वक्‍त कोमलता कैसे दिखायी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

13 उसके कोमल शब्द। यीशु की करुणा ने उसे उभारा कि वह दूसरों के साथ, खासकर दीन-दुखियों के साथ, कोमलता से बात करे। यशायाह का हवाला देते हुए, प्रेषित मत्ती ने यीशु के बारे में कहा: “वह झुके हुए सरकंडे को न कुचलेगा और टिमटिमाती बाती को न बुझाएगा।” (मत्ती 12:20; यशा. 42:3) इसका क्या मतलब है? यीशु ने कभी लोगों को बुरा-भला नहीं कहा और न ही किसी के साथ बुरा बरताव किया। इसके बजाय, वह लोगों से इस तरह बात करता था, जिससे उनका हौसला बढ़े और उन्हें ताज़गी मिले। उसने “खेदित मन के लोगों” को आशा का संदेश सुनाया। (यशा. 61:1) उसने “कड़ी मज़दूरी से थके-माँदे और बोझ से दबे” हुए लोगों को न्यौता दिया कि वे उसके पास आएँ, ताकि वे ‘ताज़गी पा सकें।’ (मत्ती 11:28-30) उसने अपने चेलों को यकीन दिलाया कि परमेश्वर अपने हर सेवक को कोमल परवाह दिखाता है। इसमें ‘छोटे’ या ऐसे सेवक भी शामिल हैं, जिन्हें दुनिया बेकार समझती है।—मत्ती 18:12-14; लूका 12:6, 7.

यीशु की कोमलता की मिसाल पर चलिए

14. हम दूसरों के लिए कोमल भावनाएँ कैसे पैदा कर सकते हैं?

14 हम यीशु की तरह कोमलता कैसे दिखा सकते हैं? हमारी कोमल भावनाएँ। हो सकता है ये भावनाएँ हमारे अंदर अपने आप न जागें, इसलिए बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम अपने अंदर ये भावनाएँ पैदा करने के लिए मेहनत करें। ‘करुणा से भरपूर गहरा लगाव’ हमारी “नयी शख्सियत” का हिस्सा है, जिसे अपनाने की सभी मसीहियों से उम्मीद की जाती है। (कुलुस्सियों 3:9, 10, 12 पढ़िए।) आप दूसरों के लिए कोमल भावनाएँ कैसे पैदा कर सकते हैं? बाइबल कहती है: “अपना दिल और बड़ा” करो। (2 कुरिं. 6:11-13) जब दूसरे आपको अपनी भावनाएँ और चिंताएँ बताते हैं, तो उनकी बात ध्यान से सुनिए। (याकू. 1:19) उनके हालात के बारे में सोचिए और खुद से पूछिए: ‘अगर मैं उसकी जगह होता, तो मैं कैसा महसूस करता? मुझे किस चीज़ की ज़रूरत होती?’—1 पत. 3:8.

15. हम गम सह रहे और दुख-तकलीफों से जूझ रहे लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?

15 हमारे कोमलता से भरे काम। कोमलता हमें उभारती है कि हम लोगों की मदद करें, खासकर उनकी जो गम सह रहे हैं और दुख-तकलीफों से जूझ रहे हैं। हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं? रोमियों 12:15 कहता है: “रोनेवालों के साथ रोओ।” कई बार, निराशा से गुज़र रहे लोगों को समस्याओं का हल नहीं, बल्कि हमदर्दी चाहिए होती है। एक बहन, जिसे अपनी बेटी की मौत के बाद भाई-बहनों से बहुत दिलासा मिला, कहती है: “मुझे बहुत अच्छा लगा जब भाई-बहन मेरे घर आए और उन्होंने मेरे गम में मेरे साथ आँसू बहाए।” हम दूसरों की कुछ कारगर तरीकों से मदद करके भी उन्हें कोमलता दिखा सकते हैं। शायद किसी विधवा को अपने घर की मरम्मत करने के लिए मदद की ज़रूरत हो। या फिर शायद किसी बुज़ुर्ग भाई या बहन को प्रचार में जाने, सभाओं में जाने या फिर डॉक्टर के पास जाने के लिए मदद की ज़रूरत हो। कोमलता से उभारे जाकर की गयी छोटी-से-छोटी मदद भी एक इंसान की ज़िंदगी में बहुत बदलाव ला सकती है। (1 यूह. 3:17, 18) सबसे ज़रूरी तरीका जिसके ज़रिए हम लोगों को कोमलता दिखा सकते हैं, वह है परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाने में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेकर। नेकदिल लोगों की ज़िंदगियाँ सँवारने का इससे बढ़िया तरीका और कोई नहीं!

क्या आप अपने भाई-बहनों की दिल से परवाह करते हैं? (पैराग्राफ 15 देखिए)

16. निराशा से जूझ रहे लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए हम उनसे क्या कह सकते हैं?

16 हमारे कोमल शब्द। हमारी कोमल भावनाएँ हमें उभारती हैं कि “जो मायूस हैं, उन्हें [हम] अपनी बातों से तसल्ली” दें। (1 थिस्स. 5:14) हम उनका हौसला बढ़ाने के लिए क्या कह सकते हैं? हम उन्हें बता सकते हैं कि हमें उनकी कितनी परवाह है। हम उनकी सच्चे दिल से तारीफ कर सकते हैं और इस तरह उन्हें यह देखने में मदद दे सकते हैं कि उनमें क्या-क्या गुण और खूबियाँ हैं। हम उन्हें याद दिला सकते हैं कि अगर यहोवा ने उन्हें सच्चाई ढूँढ़ने में मदद दी है, तो बेशक वे उसकी नज़र में बहुत अनमोल होंगे। (यूह. 6:44) हम उन्हें इस बात का यकीन दिला सकते हैं कि यहोवा अपने उन सेवकों की बहुत परवाह करता है, जो ‘टूटे मनवाले’ या ‘पिसे हुए’ हैं। (भज. 34:18) हमारे कोमल शब्द उन लोगों को ताज़गी पहुँचा सकते हैं, जिन्हें दिलासे की ज़रूरत है।—नीति. 16:24.

17, 18. (क) यहोवा प्राचीनों से उसकी भेड़ों के साथ किस तरह पेश आने की उम्मीद करता है? (ख) हम अगले लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?

17 प्राचीनो, यहोवा आपसे उम्मीद करता है कि आप उसकी भेड़ों के साथ कोमलता से पेश आएँ। (प्रेषि. 20:28, 29) याद रखिए, यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उसकी भेड़ों को सिखाएँ, उनका हौसला बढ़ाएँ और उन्हें ताज़गी दें। (यशा. 32:1, 2; 1 पत. 5:2-4) इसलिए एक प्राचीन, जो कोमल करुणा दिखाता है, वह अपने भाइयों को अपने काबू में रखने की कोशिश नहीं करेगा, यानी उनके लिए कायदे-कानून नहीं बनाएगा। या जब वे अपने हालात की वजह से यहोवा की सेवा में ज़्यादा नहीं कर पाते, तो वह उन्हें दोषी ठहराकर उन पर यहोवा की सेवा में ज़्यादा करने का दबाव नहीं डालेगा। इसके बजाय, वह चाहेगा कि वे खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करें और यह भरोसा रखेगा कि यहोवा के लिए उनका प्यार उन्हें उभारेगा कि वे उसकी सेवा में अपना भरसक करें।—मत्ती 22:37.

18 जितना ज़्यादा हम यीशु की नम्रता और कोमलता पर मनन करेंगे, उतना ही हम उसकी मिसाल पर चलते रहने के लिए उभारे जाएँगे। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि हम यीशु की तरह हिम्मत और समझदारी कैसे दिखा सकते हैं।