नीतिवचन 26:1-28
26 जैसे गरमियों में बर्फ और कटाई में पानी बरसना अखरता है,वैसे ही मूर्ख को आदर मिले, यह शोभा नहीं देता।+
2 जैसे पक्षी और अबाबील चिड़िया के उड़ने की कोई वजह होती है,वैसे ही शाप लगने की कोई-न-कोई वजह होती है।*
3 घोड़े के लिए चाबुक, गधे के लिए लगाम+और मूर्ख की पीठ के लिए छड़ी होती है।+
4 मूर्ख को उसकी मूर्खता के हिसाब से जवाब मत दे,वरना तुझमें और उसमें क्या फर्क रह जाएगा।*
5 मूर्ख को उसकी मूर्खता के हिसाब से जवाब दे,ताकि वह खुद को बुद्धिमान न समझे।+
6 जो मूर्ख को कोई काम सौंपता है,वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता है।*
7 जैसे लँगड़े की टाँगें बेकार होती हैं,वैसे ही मूर्ख का कहा नीतिवचन होता है।+
8 मूर्ख की बड़ाई करना,मानो गोफन में पत्थर बाँधकर रखना है।+
9 मूर्ख के मुँह में नीतिवचन,पियक्कड़ के हाथ में कँटीली झाड़ी जैसा है।
10 जो मूर्ख या राह चलते आदमी को काम पर लगाता है,वह उस तीरंदाज़ जैसा है जो अंधाधुंध तीर चलाता है।*
11 जैसे कुत्ता अपनी उलटी चाटने लौटता है,वैसे ही मूर्ख अपने मूर्खता के काम दोहराता है।+
12 क्या तूने ऐसा आदमी देखा है, जो अपनी नज़र में बुद्धिमान है?+
उससे ज़्यादा तो मूर्ख के सुधरने की गुंजाइश है।
13 आलसी कहता है, “सड़क पर शेर है!चौक पर जवान शेर घूम रहा है।”+
14 जिस तरह दरवाज़ा कब्ज़ों* पर झूलता है,उसी तरह आलसी, बिस्तर पर करवटें लेता है।+
15 आलसी, दावत के बरतन में हाथ तो डालता है,लेकिन खाना मुँह तक लाना उसे थकाऊ लगता है।+
16 आलसी सोचता है कि वह उन सातों से बुद्धिमान है,जिन्होंने सोच-समझकर जवाब दिया।
17 जो राह चलते किसी का झगड़ा देखकर भड़क उठता है,*वह उस आदमी के समान है, जो कुत्ते को कान से पकड़ता है।+
18 जैसा एक सनकी जलते अंगारे और मौत के तीर फेंकता है,
19 वैसा ही वह आदमी है जो अपने साथी को छलकर कहता है, “मैं तो मज़ाक कर रहा था!”+
20 जहाँ लकड़ी नहीं, वहाँ आग बुझ जाती है,जहाँ बदनाम करनेवाला नहीं, वहाँ झगड़ा शांत हो जाता है।+
21 जैसे कोयला अंगारों को और लकड़ी आग को भड़काती है,वैसे ही झगड़ालू इंसान झगड़ा बढ़ाता है।+
22 बदनाम करनेवाले की बातें लज़ीज़ खाने की तरह होती हैं,जिसे निगलकर सीधे पेट में डाला जाता है।+
23 जैसे ठीकरे पर चाँदी का पानी चढ़ा हो,वैसे ही दुष्ट के दिल से निकली प्यारी बातें होती हैं।+
24 दूसरों से नफरत करनेवाला अच्छी-अच्छी बातें तो करता है,लेकिन उसके अंदर कपट भरा होता है।
25 उसकी मीठी-मीठी बातों में मत आना,क्योंकि उसके दिल में सात घिनौनी बातें हैं।*
26 वह छल करके अपनी नफरत छिपा भी ले,तो भी मंडली के सामने उसकी बुराई का परदाफाश होगा।
27 जो गड्ढा खोदता है वह खुद उसमें जा गिरता है,जो पत्थर लुढ़काता है, वह पत्थर खुद उस पर लुढ़क आता है।+
28 झूठी ज़बान उससे नफरत करती है, जिसे वह कुचल देती हैऔर चापलूसी करनेवाला मुँह तबाही लाता है।+
कई फुटनोट
^ या शायद, “बेवजह दिया शाप नहीं लगता।”
^ या “ताकि तू उसके समान न बन जाए।”
^ शा., “अपने पैर को चोट पहुँचाता है और हिंसा पीता है।”
^ या “जो सबको घायल करता है।”
^ या “चूल।”
^ या शायद, “के झगड़े में पड़ता है।”
^ या “उसका दिल पूरी तरह घिनौना है।”