व्यवस्थाविवरण 27:1-26
27 फिर मूसा और इसराएल के मुखिया लोगों के सामने खड़े हुए और मूसा ने लोगों से कहा, “आज मैं तुम लोगों को जो आज्ञाएँ दे रहा हूँ उन सबका तुम पालन करना।
2 जब तुम यरदन पार करके उस देश में जाओगे जो तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें देनेवाला है, तो वहाँ तुम बड़े-बड़े पत्थर खड़े करना और उन पर पुताई करना।*+
3 फिर उन पत्थरों पर इस कानून के सारे नियम लिखना। जब तुम यरदन पार कर लोगे और जैसे तुम्हारे पुरखों के परमेश्वर यहोवा ने तुमसे वादा किया है, तुम उस देश में दाखिल हो जाओगे जो यहोवा तुम्हें देनेवाला है, जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं, तब तुम उन पत्थरों पर कानून के सारे नियम लिखना।+
4 यरदन पार करने के बाद तुम एबाल पहाड़+ पर पत्थर खड़े करना और उन पर पुताई करना,* ठीक जैसे आज मैं तुम्हें आज्ञा दे रहा हूँ।
5 वहाँ तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लिए पत्थरों से एक वेदी भी तैयार करना। मगर तुम उन पत्थरों को लोहे के किसी औज़ार से तराशना मत।+
6 तुम अनगढ़े पत्थरों से ही अपने परमेश्वर यहोवा के लिए वेदी बनाना और उस पर यहोवा के लिए होम-बलियाँ अर्पित करना।
7 तुम वहाँ पर शांति-बलियाँ अर्पित करना+ और उन्हें वहीं खाना+ और अपने परमेश्वर यहोवा के सामने खुशियाँ मनाना।+
8 तुम इस कानून के सारे नियम उन पत्थरों पर साफ-साफ लिखना।”+
9 इसके बाद मूसा और लेवी याजकों ने सभी इसराएलियों से कहा, “इसराएलियो, शांत रहकर ध्यान से सुनो। आज के दिन तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लोग बन गए हो।+
10 तुम अपने परमेश्वर यहोवा की बात सुनना और उसकी आज्ञाओं और कायदे-कानूनों का पालन किया करना+ जो आज मैं तुम्हें दे रहा हूँ।”
11 उस दिन मूसा ने लोगों को यह आज्ञा दी:
12 “जब तुम यरदन पार कर लोगे तो लोगों को आशीर्वाद देने के लिए ये सारे गोत्र गरिज्जीम पहाड़+ पर खड़े होंगे: शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, यूसुफ और बिन्यामीन।
13 और शाप का ऐलान करने के लिए ये सारे गोत्र एबाल पहाड़+ पर खड़े होंगे: रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान और नप्ताली।
14 और लेवी सभी इसराएलियों के सामने ऊँची आवाज़ में यह कहेंगे:+
15 ‘शापित है वह इंसान जो मूरत तराशता है+ या धातु की मूरत* बनाता है+ और उसे छिपाकर रखता है, क्योंकि कारीगर* के हाथ की ऐसी रचना यहोवा की नज़र में घिनौनी है।’+ (तब जवाब में सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’*)
16 ‘शापित है वह इंसान जो अपने पिता या अपनी माँ को नीचा दिखाता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
17 ‘शापित है वह इंसान जो अपने पड़ोसी की ज़मीन का सीमा-चिन्ह खिसका देता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
18 ‘शापित है वह इंसान जो किसी अंधे को रास्ते से भटका देता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
19 ‘शापित है वह इंसान जो तुम्हारे बीच रहनेवाले किसी परदेसी, अनाथ* या विधवा के मामले में गलत फैसला सुनाकर अन्याय करता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
20 ‘शापित है वह इंसान जो अपने पिता की पत्नी के साथ यौन-संबंध रखता है, क्योंकि वह अपने पिता का अपमान करता है।’*+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
21 ‘शापित है वह इंसान जो किसी जानवर के साथ यौन-संबंध रखता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
22 ‘शापित है वह इंसान जो अपनी बहन के साथ यौन-संबंध रखता है, फिर चाहे वह उसके पिता की बेटी हो या उसकी माँ की बेटी।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
23 ‘शापित है वह इंसान जो अपनी सास के साथ यौन-संबंध रखता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
24 ‘शापित है वह इंसान जो घात लगाकर अपने पड़ोसी को मार डालता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
25 ‘शापित है वह इंसान जो किसी बेगुनाह को मार डालने के लिए घूस लेता है।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
26 ‘शापित है वह इंसान जो इस कानून के नियमों को नहीं मानता।’+ (तब सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’)
कई फुटनोट
^ या “चूना पोतना।”
^ या “चूना पोतना।”
^ या “ऐसा ही हो!”
^ या “लकड़ी और धातु का काम करनेवाले।”
^ या “ढली हुई मूरत।”
^ या “जिसके पिता की मौत हो गयी है।”
^ शा., “का घेरा उघाड़ता है।”