पहला शमूएल 20:1-42

20  फिर दाविद रामाह के नायोत से भाग गया। मगर वह योनातान के पास गया और उससे कहने लगा, “मैंने क्या किया है?+ मेरा कसूर क्या है? मैंने तेरे पिता का क्या बिगाड़ा है जो वह मेरी जान के पीछे पड़ा है?”  योनातान ने कहा, “देख, ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता!+ तू नहीं मरेगा। मेरा पिता मुझे बताए बगैर कोई काम नहीं करता, फिर चाहे छोटा काम हो या बड़ा। अगर उसने तुझे मार डालने की सोची होती तो मुझे ज़रूर बताता। यह नहीं हो सकता।”  मगर फिर दाविद ने शपथ खायी और कहा, “तेरा पिता अच्छी तरह जानता है कि तू मुझ पर मेहरबान है+ और उसने कहा होगा, ‘इस बारे में योनातान को कुछ मत बताना वरना वह गुस्सा हो जाएगा।’ मैं यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ, मेरी मौत बहुत करीब है।”+  योनातान ने दाविद से कहा, “तू मुझसे जो भी कहेगा, मैं तेरे लिए करूँगा।”  दाविद ने योनातान से कहा, “कल नए चाँद का दिन है।+ मुझे राजा के साथ भोज में बैठना है। लेकिन अगर तू इजाज़त दे तो मैं जाकर मैदान में छिप जाऊँगा और तीसरे दिन की शाम तक वहीं छिपा रहूँगा।  अगर तेरा पिता पूछे कि मैं भोज में क्यों नहीं आया तो कहना, दाविद ने मुझसे कहा कि वह जल्द-से-जल्द अपने शहर बेतलेहेम+ जाना चाहता है, क्योंकि वहाँ उसके पूरे परिवार के लिए सालाना बलिदान चढ़ाया जाएगा। उसने मुझसे बहुत मिन्‍नत की इसलिए मैंने उसे जाने की इजाज़त दे दी।+  तब अगर तेरा पिता कहे, ‘ठीक है, कोई बात नहीं,’ तो इसका मतलब है कि तेरे सेवक को कोई खतरा नहीं। लेकिन अगर तेरा पिता गुस्सा हो जाता है तो समझ लेना कि उसने मेरा बुरा करने की ठान ली है।  तू अपने इस सेवक के साथ वफादारी* निभाना+ क्योंकि तूने यहोवा के सामने अपने सेवक के साथ करार किया है।+ लेकिन अगर मैं दोषी हूँ+ तो तू खुद मुझे मार डाल। तू क्यों मुझे अपने पिता के हवाले करना चाहता है?”  तब योनातान ने कहा, “तू यह सोच भी कैसे सकता है कि मैं तेरे साथ ऐसा करूँगा? अगर मुझे पता चले कि मेरे पिता ने तेरा बुरा करने की ठान ली है, तो मैं तुझे ज़रूर बताऊँगा।”+ 10  दाविद ने कहा, “अगर तेरा पिता भड़क उठता है तो मुझे कौन बताएगा?” 11  योनातान ने कहा, “चलो हम दोनों मैदान में चलते हैं।” फिर वे दोनों मैदान में गए। 12  योनातान ने दाविद से कहा, “मैं इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा को गवाह मानकर तुझसे वादा करता हूँ कि मैं कल या परसों इस समय तक पता लगाऊँगा कि मेरे पिता के दिल में क्या है। अगर वह तुझसे नाराज़ नहीं है तो मैं तुझे ज़रूर इसकी खबर दूँगा। 13  और अगर मेरे पिता ने तेरा बुरा करने का इरादा किया है तो भी मैं तुझे बताऊँगा। अगर मैंने तुझे नहीं बताया और खतरे से नहीं बचाया तो यहोवा मुझ योनातान को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे। मेरी दुआ है कि यहोवा तेरे साथ रहे,+ जैसे वह मेरे पिता के साथ था।+ 14  तू भी यहोवा की तरह मेरे साथ वफादारी* निभा, मेरे जीते-जी और मेरी मौत के बाद भी।+ 15  तू मेरे घराने के साथ वफादारी निभाना,+ तब भी जब यहोवा तेरे सभी दुश्‍मनों को धरती से मिटा देगा।” 16  योनातान ने दाविद के घराने के साथ एक करार किया और कहा, “यहोवा दाविद के दुश्‍मनों से ज़रूर लेखा लेगा।” 17  तब योनातान ने अपने प्यार का वास्ता देकर एक बार फिर दाविद से शपथ खिलवायी क्योंकि वह दाविद से जान के बराबर प्यार करता था।+ 18  फिर योनातान ने दाविद से कहा, “कल नए चाँद के दिन+ जब तेरी जगह खाली रहेगी तो सब तुझे ढूँढ़ेंगे। 19  तीसरे दिन वे तेरे बारे में ज़रूर पूछेंगे। तू इसी जगह आना जहाँ तू उस दिन* छिपा था और इस पत्थर के पास रहना। 20  मैं पत्थर के एक तरफ तीन बार तीर ऐसे चलाऊँगा मानो मैं किसी निशाने पर मारने की कोशिश कर रहा हूँ। 21  मैं अपने सेवक को तीर ढूँढ़कर लाने के लिए कहूँगा। अगर मैं सेवक से कहूँ, ‘देख, तीर तेरे इस तरफ हैं जाकर ले आ,’ तो तू लौट आना क्योंकि यहोवा के जीवन की शपथ, इसका मतलब यह होगा कि तेरी जान को कोई खतरा नहीं है। तू सलामत रहेगा। 22  लेकिन अगर मैं सेवक से कहूँ, ‘देख, तीर बहुत दूर जा गिरे हैं’ तो तू चला जाना क्योंकि यहोवा तुझे भेज रहा होगा। 23  और यहोवा सदा के लिए इस बात का गवाह हो+ कि हम दोनों ने आपस में दोस्ती का करार किया है।”+ 24  इसलिए दाविद जाकर मैदान में छिप गया। फिर नए चाँद के दिन शाऊल भोज में अपने खाने की जगह पर बैठा।+ 25  वह दीवार के पास उस जगह बैठा जहाँ वह हमेशा बैठा करता था। योनातान उसके सामने था और अब्नेर+ उसकी बगल में बैठा था, मगर दाविद की जगह खाली थी। 26  उस दिन शाऊल ने दाविद के बारे में कुछ नहीं पूछा क्योंकि उसने सोचा कि ज़रूर वह किसी वजह से अशुद्ध+ हो गया होगा इसीलिए नहीं आया। 27  लेकिन नए चाँद के दूसरे दिन भी जब दाविद की जगह खाली रही तो शाऊल ने अपने बेटे योनातान से पूछा, “क्या बात है, यिशै का बेटा+ भोज में नहीं आया? कल भी नहीं आया था और आज भी नहीं आया?” 28  योनातान ने कहा, “दाविद ने मुझसे बेतलेहेम जाने की इजाज़त माँगी थी। उसने मुझसे बहुत मिन्‍नत की+ 29  और कहा, ‘मेहरबानी करके मुझे जाने की इजाज़त दे, क्योंकि मेरे शहर में मेरा परिवार बलिदान चढ़ा रहा है और मेरे अपने भाई ने मुझे बुलाया है। अगर तेरी इजाज़त हो तो मैं चुपके से जाकर अपने भाइयों से मिल आऊँगा।’ यही वजह है कि वह राजा की मेज़ पर नहीं आया।” 30  यह सुनते ही शाऊल योनातान पर आग-बबूला हो गया और उससे कहा, “बागी कहीं का!* तुझे क्या लगता है, मुझे नहीं पता कि तू यिशै के उस बेटे का साथ दे रहा है? तू ऐसा करके खुद की और अपनी माँ की बेइज़्ज़ती कर रहा है। 31  जब तक यिशै का वह बेटा ज़िंदा रहेगा तू राजा नहीं बन पाएगा और तेरा राज कायम नहीं रहेगा।+ इसलिए जल्दी से भेज किसी को और उसे वापस ले आ। उसे मरना ही होगा।”*+ 32  मगर योनातान ने अपने पिता शाऊल से कहा, “तू क्यों उसकी जान के पीछे पड़ा है?+ उसने ऐसा क्या किया है?” 33  तब शाऊल ने योनातान पर ज़ोर से भाला फेंका।+ योनातान समझ गया कि उसके पिता ने दाविद को मार डालने की ठान ली है।+ 34  योनातान को बहुत गुस्सा आया और वह फौरन मेज़ से उठ गया। उसने नए चाँद के उस दूसरे दिन कुछ नहीं खाया क्योंकि उसे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि उसके पिता ने दाविद की कितनी बेइज़्ज़ती की।+ 35  अगली सुबह योनातान दाविद से मिलने मैदान में गया, ठीक जैसे उसने वादा किया था और उसका जवान सेवक भी उसके साथ था।+ 36  योनातान ने अपने सेवक से कहा, “मैं तीर मारता हूँ और तू दौड़कर जा और उन्हें ढूँढ़ ला।” सेवक भागकर गया और योनातान ने ऐसा तीर मारा कि वह उससे बहुत आगे निकल गया। 37  जब सेवक योनातान के छोड़े हुए तीर के पास पहुँचा, तो योनातान ने चिल्लाकर कहा, “तीर बहुत दूर जा गिरा है, 38  जल्दी भाग! देर मत कर!” सेवक ने जाकर तीर उठाए और वापस अपने मालिक के पास आया। 39  योनातान और दाविद यह इशारा समझ गए मगर सेवक को इसका कोई अंदाज़ा नहीं था। 40  फिर योनातान ने अपने हथियार सेवक को दिए और उससे कहा, “तू इन्हें लेकर शहर चला जा।” 41  जब सेवक चला गया तो दाविद पास की उस जगह से उठा जो दक्षिण की तरफ थी। वह मुँह के बल गिरकर तीन बार झुका। फिर उन्होंने एक-दूसरे को चूमा और वे एक-दूसरे के लिए रोने लगे। दाविद ज़्यादा रोया। 42  योनातान ने दाविद से कहा, “तू इत्मीनान से जा क्योंकि हम दोनों ने यहोवा के नाम से शपथ खाकर यह करार किया है,+ ‘यहोवा मेरे और तेरे बीच और मेरे वंशजों और तेरे वंशजों के बीच सदा तक गवाह बना रहे।’”+ फिर दाविद वहाँ से चला गया और योनातान शहर लौट गया।

कई फुटनोट

या “अटल प्यार।”
या “अटल प्यार।”
शा., “काम के दिन।”
या “बागी औरत की औलाद।” ये शब्द योनातान को बेइज़्ज़त करने के लिए कहे गए थे।
शा., “वह मौत का बेटा है।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो