क1
बाइबल के अनुवाद के सिद्धांत
बाइबल इब्रानी, अरामी और यूनानी भाषा में लिखी गयी थी। आज पूरी बाइबल या उसकी कुछ किताबें 3,000 से ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं। बाइबल पढ़नेवाले ज़्यादातर लोग वे भाषाएँ नहीं जानते जिनमें यह लिखी गयी थी इसलिए उन्हें अनुवाद की गयी बाइबल की ज़रूरत होती है। तो सवाल यह है कि बाइबल का अनुवाद किन सिद्धांतों के मुताबिक किया जाना चाहिए और पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद कैसे उन्हीं सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है?
कुछ लोग शायद सोचें कि अगर बाइबल की हर आयत का शब्द-ब-शब्द अनुवाद किया जाए या उसका इंटरलीनियर बाइबल की शैली में अनुवाद किया जाए, तो पढ़नेवालों को ठीक वही जानकारी मिलेगी जो मूल भाषाओं में लिखी गयी थी। लेकिन सच तो यह है कि इससे ज़्यादातर आयतों का सही-सही मतलब नहीं मिलेगा। इसकी कुछ वजहों पर ध्यान दीजिए:
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हर भाषा का अपना व्याकरण और शब्द भंडार होता है और अपनी ही वाक्य रचना होती है और ये दूसरी भाषाओं से बिलकुल अलग होते हैं। इब्रानी भाषा के प्रोफेसर एस. आर. ड्राइवर ने लिखा कि हर भाषा का “न सिर्फ व्याकरण और उद्गम दूसरी भाषाओं से अलग होता है, बल्कि . . . विचारों को वाक्यों में पिरोने का तरीका भी अपने आप में अनोखा होता है।” हर भाषा में सोचने का अपना ही एक तरीका होता है। प्रोफेसर ड्राइवर यह भी कहते हैं, “इसलिए सभी भाषाओं में वाक्य रचना एक जैसी नहीं होती।”
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आज के ज़माने की किसी भी भाषा के शब्द और व्याकरण उस इब्रानी, अरामी और यूनानी भाषा से हू-ब-हू नहीं मिलते जिनमें बाइबल लिखी गयी थी। इसलिए अगर बाइबल का शब्द-ब-शब्द अनुवाद किया जाए तो वह समझ नहीं आएगा या फिर गलत मतलब दे सकता है।
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एक शब्द के कई मतलब हो सकते हैं और एक वाक्य में उस शब्द का जो मतलब होता है दूसरे वाक्य में उसी का मतलब बिलकुल अलग होता है।
कुछ आयतों में इब्रानी या यूनानी भाषा का शब्द-ब-शब्द अनुवाद किया जा सकता है, मगर ऐसा करते वक्त अनुवादकों को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।
आगे कुछ उदाहरण दिए गए हैं जो दिखाते हैं कि अगर शब्द-ब-शब्द अनुवाद किया जाए तो कैसे गलत मतलब निकल सकता है:
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बाइबल की मूल भाषाओं में शब्द “सो” और “सो गया” का मतलब सचमुच की नींद सोना या मौत की नींद सोना हो सकता है। (मत्ती 28:13; प्रेषितों 7:60) जिन आयतों में ‘सोने’ का मतलब मौत है, वहाँ बाइबल के अनुवादक ‘मौत की नींद सोना’ लिख सकते हैं। इससे आज के ज़माने के लोगों को ऐसी आयतें पढ़कर गलत मतलब नहीं मिलेगा।—1 कुरिंथियों 7:39; 1 थिस्सलुनीकियों 4:13; 2 पतरस 3:4.
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इफिसियों 4:14 में प्रेषित पौलुस ने एक यूनानी शब्द इस्तेमाल किया जिसका शब्द-ब-शब्द अनुवाद है, “इंसानों का पासा खेलने में।” दरअसल यह एक प्राचीन मुहावरा है जिसका मतलब है पासे के खेल में दूसरों को धोखा देना। ज़्यादातर भाषाओं में अगर इस मुहावरे का शब्द-ब-शब्द अनुवाद किया जाए तो कोई तुक नहीं बनेगा। लेकिन अगर कुछ ऐसा कहा जाए कि ‘इंसान उन्हें बहका लेते हैं’ तो मतलब साफ-साफ समझ आएगा।
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रोमियों 12:11 में एक यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका शाब्दिक मतलब है “पवित्र शक्ति का उबलना।” ये शब्द हिंदी भाषा में सही मतलब नहीं देते इसलिए इस बाइबल में इनका अनुवाद “पवित्र शक्ति के तेज से भरे रहो” किया गया है।
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मशहूर पहाड़ी उपदेश में बताए यीशु के कुछ शब्दों का अनुवाद अकसर यूँ किया जाता है: “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं।” (मत्ती 5:3, हिंदी—ओ.वी.) लेकिन “मन के दीन” ये शब्द मूल भाषा के शब्दों का सही मतलब नहीं देते, क्योंकि यीशु यहाँ लोगों को नम्र होने की सीख नहीं दे रहा था बल्कि यह सिखा रहा था कि खुश रहने के लिए उन्हें इस बात का एहसास होना चाहिए कि उन्हें परमेश्वर के मार्गदर्शन की ज़रूरत है, सिर्फ खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करने से खुशी नहीं मिलेगी। (लूका 6:20) इसलिए कुछ बाइबलों में इसका अनुवाद ऐसे किया गया है: “जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है” या “जो जानते हैं कि उन्हें परमेश्वर की ज़रूरत है।” ये अनुवाद मूल भाषा के शब्दों का सही-सही मतलब देते हैं।—मत्ती 5:3; द न्यू टेस्टामेंट इन मॉर्डन इंग्लिश।
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कई आयतों में एक इब्रानी शब्द का अनुवाद “जलन” किया गया है यानी किसी करीबी रिश्तेदार के विश्वासघात करने पर गुस्से से भर जाना या दूसरों की चीज़ें देखकर उनसे ईर्ष्या करना। (नीतिवचन 6:34; यशायाह 11:13) लेकिन दूसरी आयतों में उसी इब्रानी शब्द का इस्तेमाल एक अच्छे गुण के लिए हुआ है। जैसे यहोवा का “जोश” या अपने लोगों को बचाने की उसकी ज़बरदस्त इच्छा या यहोवा की माँग कि “सिर्फ उसी की भक्ति की जाए।” (निर्गमन 34:14; 2 राजा 19:31; यहेजकेल 5:13; जकरयाह 8:2) उसी शब्द का इस्तेमाल परमेश्वर के वफादार लोगों के “जोश” के लिए भी किया जा सकता है जो वे उसके लिए और उसकी उपासना के लिए दिखाते हैं। साथ ही, यह बताने के लिए कि ‘उनसे यह बरदाश्त नहीं होता कि लोग परमेश्वर के सिवा किसी और की उपासना करें।’—भजन 69:9; 119:139; गिनती 25:11.
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इंसान के हाथ के लिए इब्रानी भाषा में जो शब्द है, उसके कई मतलब हैं। इसलिए मतलब को ध्यान में रखते हुए उस शब्द का अनुवाद “ताकत,” “अधिकार” या “उदारता” किया जा सकता है। (व्यवस्थाविवरण 32:27; 2 शमूएल 8:3; 1 राजा 10:13) पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद में इस शब्द का करीब 40 अलग-अलग तरीकों से अनुवाद किया गया है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम समझ सकते हैं कि बाइबल का अनुवाद करते वक्त इब्रानी या यूनानी भाषा के किसी शब्द के लिए हर बार एक ही शब्द इस्तेमाल कर लेना सही नहीं होगा। एक अनुवादक को सोच-समझकर तय करना होगा कि मूल पाठ में जो लिखा है उसका सही अनुवाद करने के लिए उसे अपनी भाषा में कौन-से शब्द इस्तेमाल करने होंगे। इसके अलावा, वाक्यों की रचना भी उसकी भाषा के व्याकरण के नियमों के हिसाब से होनी चाहिए ताकि अनुवाद पढ़ने में आसान हो।
पर साथ ही आयत में जो लिखा है उसे दूसरे शब्दों में कहते वक्त अपनी मरज़ी से तबदीलियाँ नहीं की जानी चाहिए। जो अनुवादक मूल पाठ का अपनी मन-मरज़ी से अनुवाद करता है, वह उसका गलत मतलब दे सकता है। कैसे? वह शायद मूल पाठ के असली मतलब में अपने विचार मिलाकर बताएगा या मूल पाठ की कुछ ज़रूरी जानकारी निकाल देगा। इसलिए जिस बाइबल में मूल पाठ को अपने शब्दों में समझाया जाता है और पूरी छूट लेकर अनुवाद किया जाता है, वह भले ही पढ़ने में आसान लगे मगर उसे पढ़ने से एक व्यक्ति को वह संदेश नहीं मिलेगा जो मूल पाठ में दिया गया है।
एक अनुवादक जिन धार्मिक शिक्षाओं को सख्ती से मानता है वे भी उसके अनुवाद पर असर कर सकती हैं। मिसाल के लिए मत्ती 7:13 कहता है: “खुला है वह रास्ता, जो विनाश की तरफ ले जाता है।” कुछ अनुवादक जो शायद अपनी धार्मिक शिक्षाओं को लेकर बहुत कट्टर थे, उन्होंने अपने अनुवाद में यहाँ “विनाश” की जगह “नरक” शब्द इस्तेमाल किया जबकि यूनानी भाषा में जो शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका असली मतलब “विनाश” है।
बाइबल के अनुवादकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बाइबल आम लोगों की भाषा में लिखी गयी थी जैसे किसानों, चरवाहों और मछुवारों की। (नहेमायाह 8:8, 12; प्रेषितों 4:13) इसलिए एक अच्छा अनुवाद वही होगा जिसे पढ़ने पर नेकदिल लोग बाइबल का संदेश आसानी से समझ पाएँ, फिर चाहे वे किसी भी माहौल में पले-बढ़े हों। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना बेहतर होता है जो ज़्यादा बोले जाते हैं और आसानी से समझ आते हैं, बजाय उन शब्दों के जो आम लोग शायद ही इस्तेमाल करते हैं।
अतिरिक्त लेख क4 देखें।) कई अनुवादों में इस नाम की जगह “प्रभु” जैसी उपाधियाँ लिखी गयी हैं। और कुछ अनुवादों में तो इस सच्चाई को छिपा दिया गया है कि परमेश्वर का एक नाम भी है। मिसाल के लिए, यूहन्ना 17:26 में यीशु की जो प्रार्थना दर्ज़ है, उसका अनुवाद कुछ बाइबलों में ऐसे किया गया है: “मैंने तेरे बारे में उन्हें बताया है” और यूहन्ना 17:6 में लिखा है: “मैंने तुझे उन पर ज़ाहिर किया है जिन्हें तूने मुझे दिया था।” लेकिन यीशु की प्रार्थना का सही अनुवाद यह है: “मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है” और “मैंने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया है जिन्हें तूने दुनिया में से मुझे दिया है।”
बाइबल के कई अनुवादकों ने अपने अनुवाद से परमेश्वर का नाम, यहोवा निकालकर ऐसा काम किया है जिसे वे किसी भी तरह सही नहीं ठहरा सकते। इसलिए आज के अनुवादों में यह नाम नहीं पाया जाता जबकि बाइबल की प्राचीन हस्तलिपियों में यह नाम दिया गया है। (नयी दुनिया अनुवाद के पहले अँग्रेज़ी संस्करण के परिचय में यह लिखा था: “हमने शास्त्र का अनुवाद अपने शब्दों में नहीं किया है। इस पूरे अनुवाद में हमारी यही कोशिश रही है कि जहाँ तक हो सके हम शब्द-ब-शब्द अनुवाद करें, बशर्ते यह इतना अटपटा न हो कि पाठ का मतलब समझना मुश्किल हो जाए। और मूल भाषा के जिन मुहावरों का अनुवाद आज के अँग्रेज़ी मुहावरों से किया जा सकता है वहाँ उनका इस्तेमाल किया गया है।” इसलिए ‘नयी दुनिया बाइबल अनुवाद समिति’ ने जहाँ तक हो सके, इस अनुवाद में ऐसे शब्द या शब्द-समूह इस्तेमाल किए हैं जो मूल इब्रानी और यूनानी पाठ की शैली जैसे हों, पर साथ ही उन्होंने ध्यान रखा है कि जिन आयतों में ऐसी शैली का इस्तेमाल करने से उन्हें पढ़ने में अटपटा लगेगा या आयतों का सही मतलब समझ नहीं आएगा वहाँ उनका इस्तेमाल न किया जाए। इसलिए यह बाइबल आसानी से पढ़ी जा सकती है और पढ़नेवाला पूरा यकीन रख सकता है कि परमेश्वर ने अपनी प्रेरणा से जो संदेश लिखवाया था उसका इस बाइबल में सही-सही अनुवाद किया गया है।—1 थिस्सलुनीकियों 2:13.