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गीत 146

तुमने मेरे लिए किया

तुमने मेरे लिए किया

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(मत्ती 25:34-40)

  1. हैं म-सीह के भा-ई अ-भि-षिक्‍त जन य-हाँ,

    भे-ड़ें दू-जी उन-के संग कर-तीं से-वा।

    उन्‌-हें साथ और स-हा-रा

    दे-तीं जिस त-रह,

    सम-झे उन-की मेह-नत यी-शु इस त-रह:

    (कोरस)

    “उन्‌-हें हौस-ला दि-या, वो मुझ-को मि-ला,

    उन-के संग जो कि-या, संग मे-रे कि-या।

    जो मेह-नत तुम्-हा-री थी उन-के लि-ए,

    वो मेह-नत सच में, थी मे-रे लि-ए;

    कि-या उन-के लि-ए, था मे-रे लि-ए।”

  2. “मे-री बद-हा-ली में, दी थी रा-हत मु-झे,

    हर ज़-रू-रत आ-कर की पू-री तुम-ने।”

    “कि-या हम-ने कब ये?”

    पू-छें-गे सब उस-से,

    तब बाद-शाह ये प्यार से क-हे-गा उन-से:

    (कोरस)

    “उन्‌-हें हौस-ला दि-या, वो मुझ-को मि-ला,

    उन-के संग जो कि-या, संग मे-रे कि-या।

    जो मेह-नत तुम्-हा-री थी उन-के लि-ए,

    वो मेह-नत सच में, थी मे-रे लि-ए;

    कि-या उन-के लि-ए, था मे-रे लि-ए।”

  3. “व-फा-दा-री मुझ-से है नि-भा-यी तुम-ने,

    मे-रे भाइ-यों के साथ सं-दे-शा दे-के।”

    फिर वो दे-गा इ-नाम

    यूँ कह-कर भे-ड़ों को:

    “जुग-जुग जी-ओ, धर-ती के वा-रिस ब-नो!”

    (कोरस)

    “उन्‌-हें हौस-ला दि-या, वो मुझ-को मि-ला,

    उन-के संग जो कि-या, संग मे-रे कि-या।

    जो मेह-नत तुम्-हा-री थी उन-के लि-ए,

    वो मेह-नत सच में, थी मे-रे लि-ए;

    कि-या उन-के लि-ए, था मे-रे लि-ए।”